बिसाऊ के धामू वंश का इतिवृत्त
अतीत की झलक
मानव के बाह्य व आन्तरिक जीवन का समन्वयात्मक स्वरूप ही उसके सांस्कृतिक जीवन को श्रेष्ठ बनाता है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष जातीय अतीत के गरिमामय सूत्रों से समर्पित भाव से जुड़े हुए अपने को आभामंडित अनुभव करता है और यह अपने जातीय व्यक्तित्व को अलग पहचान बनाकर स्वयं को अन्यान्य सामाजिक इकाइयों से पृथक एवं विसिष्ठ रूप में प्रस्थापित करके गौरव का अनुभव करता है। तभी तो वह व्यतीत के आकर्षक दृश्यों को अपने भीतर संजोये रखता है, वर्तमान से उसका मूल्यांकन करता है तथा उन अनुभवों के आधार पर उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में लग जाता है। यह सहजरूप में अपने जातीय आदर्शों, आस्थाओं व परम्पराओं को नाना कलाओं में अभिव्यक्त करता रहता है। इस प्रकार संस्कृति को अविरल धारा सतत प्रवहमान रहती है।
किसी देश या राष्ट्र के समुचित उत्थान व सामाजिक विकास में उस देश के हर वर्ग का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। बुद्धिजीवी बुद्धि के बल पर, धनपति धन के बल पर, उद्यमी उद्यम के बल पर तथा श्रमिक अपने श्रम के बल पर देश व समाज की बहुमुखी उन्नति के लिए सतत प्रयासरत रहते हैं। कहने को आसान है कि सभी वर्ग अपने-अपने क्षेत्र में शोषण करते हैं किन्तु उनके शारीरिक व बौद्धिक शक्तियों की अनदेखी करना नितांत भूल होगी। आवश्यकता है तो मात्र इसकी कि सभी वर्गों को कर्मक्षेत्र में उतारना और उनमें समन्वय स्थापित करना तथा इसके साथ ही प्रत्येक वर्ग के स्वार्थ को एक परिसीमा में बांधे रखना।
इन सब वर्गों में श्रमिक वर्ग का कार्य राष्ट्र के लिए प्राणवायु का काम करता है। श्रमिक वर्ग में कलाीवी वर्ग अपनी कला साधना, योग्यता तथा क्षमता के बल पर संस्कृति में नव प्राण फूंकता है तथा अनेक नव आयाम भी खोलता है। इनकी हस्त कलाओं में अतीत का गौरव आलोकित हुआ है। जातीय गौरव के स्वर मुखर हुए हैं। वे अपनी हीन भावनाओं से मुक्त हुए और उन्होंने अपने व्यापक चिंतन व अन्वेषण कार्यों के माध्यम से अपना विशिष्ट स्थान बनाया। कलाजीवी वर्ग में जांगिड़ समाज का स्थान भी उल्लेखनीय है।
जांगिड़ ब्राह्मण जाति की उत्पत्ति बहाऋषि अंगिरा से हुई है। सृष्टि के आरम्भ ने महर्षि अंगिरा की उत्पत्ति अग्नि नामक परम तत्व से मानी जाती है यथा 'ये अंगारा आंसंस्त अंगिरसोऽभवेन।' ये बला के मानस पुत्रों में से एक थे। बडाऋषि अंगिरा के इदम में वेद स्वतः प्रस्फुटित हुए हैं। अंगिरस अग्नि के आविष्कारक मंत्रदृष्टा, महान धनुर्भर, गोपालक, उपनिषद् एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय के संस्थापक और कृषिभूमि के शोधकर्ता थे। दुर्धर्ष सेनानायक का कार्य करने के कारण प्रतापी, वीर, दिग्विजयी अंगिरा ऋषि को आगिड़ ऋषि कड़ा गया।
अंगिरा ने शाक द्वीप, क्रोची द्वीप तथा कुरुद्वीप अर्थात् योरोप एवं अफ्रीका महाद्वीप को जीतकर अनेक नगर व क्षेत्र बसाये। टर्की का अंकारा, रूस का अंगारा, पाना का अंकरा तथा अंगोला आदि पुरातन नाम उस अंगिरा की स्मृति को आज भी संजोये हुए हैं।
अंगिरा-वंश परम्परा में अचर्यवेट के रचयिता महर्षि अथर्वागिरस, देवगुरु बृहस्पति, आप्य, सुधन्वा आदि ऋषि हुए हैं। विश्वकर्मा अनेक हुए हैं। आदि विश्वकर्मा (प्रथम) कौन थे. इस पर विद्वानों में मतभेद हैं। विद्वानों का एक वर्ग महर्षि भुवन के पुत्र को प्रथम विश्वकर्मा मानते हैं तो दूसरा वर्ग महर्षि अंगिरा के पुत्र सुधन्या को प्रथम विश्वकर्मा वाहाते हैं। कुछ भी हो, यह निश्चित है 'अंगिरोऽसिजांगिड़ यानि जिस क्षेत्र में अमिरा ऋषि रहते थे, समय पाकर अपभ्रंशरूप में उस स्थान का नाम जांगिड़ा पड़ा। कालान्तर में उनकी संतान ही जांगिड़ कहलाई।
भारतीय शिल्प के जनक 18 पुरातन आचार्यों में महर्षि विश्वकर्मा का नाम वहीं श्रद्धा से लिया जाता है। उन्होंने वास्तुकला एवं ललित कला में नवीन आविष्कार किए व लोकप्रिय पद्धतियां प्रचलित की। उन्होंने गरुड, मयूर, पुष्पक, कार्मण, शातकुम्भ, सोमयान आदि वायुयानों का निर्माण किया तमृा उनके शिष्यों ने अनेक आयुधों तथा वाद्ययंत्रों की रचना प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान किया। कलियुग के प्रारम्भ से आज तक लाखों की संख्या में वैज्ञानिक, शिल्पाचार्य, संत मुनि एवं सम्राट पुरुष हुए हैं जिन्होंने भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला, काष्ठकला, चित्रकला तथा धर्म व संस्कृति को विरासत को जीवंत ही नहीं रखा बल्कि उसको विश्व गौरव भी प्रदान किया |
जांगिड़ों की अनेक शाखाएं भारतवर्ष में फैली हुई हैं। उनके विभिन्न गौत्र एवं शासन हैं जिनमें कश्यप गौत्र तथा धामू शासन वाली शाखा भी सर्वत्र पाई जाती है। कुछ विद्वान धामू शासन का गौत्र गौतम मानते हैं। इनकों अपने वंश में हुए अनेक यशस्वी व्यक्तियों के नाम से, क्षेत्र या गांव विशेष के नाम से भी जाना जाता हैं। इस प्रकार धामू वंशियों की अनेक उपशाखाएं भी राजस्थान में रह रही हैं। यहां यह भी विचारणीय है कि कुछ शासन शब्दों में समानता नजर आती है जैसे धामा, धामू आदि । कालान्तर में मूल शब्द के उच्चारण भेद से अनेक नामधारित शासन प्रचलन में आ गए, ऐसी संभावना स्वाभाविक है। कुछ भी हो, यह तो निर्विवाद है कि जिस शासन के वंश में प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति पैदा हुए तथा शिल्प विद्या में निष्णात हुए, उन वंशजों ने अधिक ख्याति अर्जित की और उनका अधिक प्रभाव समाज में बना रहा।
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में अनेक शासनों के शिल्पी बसे हुए हैं तथा विभिन्न तकनीकी कार्य के विशेषज्ञ हैं। घामू शासन के शिल्पी भी देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं और अर्थार्जन के साथ-साथ शिल्प विद्या के उन्नयन में भी समर्पित भाव से सेवारत हैं। यहां सभी धामुओं की समस्त शाखाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या करना अभीष्ट नहीं है। इसलिए यहां मात्र बिसाऊ के धामू परिवार की ही ऐतिहासिक झलक दी जा रही है तथा उनकी वंशावली व उनके परिवार प्रधानों का संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है।
धामू-वंश
मणीराम बहीभाट की बहियों से संकेत मिलता है कि धामूवों का मूलस्थान राजस्थान ही था। उनका मूल निवास स्थान श्री डूंगरगढ़ तहसील में 'लूणियो गुंसाईसर' गांव बताया जाता है। वहां से उठकर उनके परिवार रतनगढ़ पट्टी से निकलते हुए फतेहपुर तहसील के गांवों में बसते गए। किस शताब्दी में आये, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। किन्तु यह सत्य है कि धामू उक्त पट्टी में अधिक बसे हुए हैं, इसलिए संभावित निष्क्रमण से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान में इन स्थलों से उठकर बहुत बड़ी संख्या में धामू परिवार राजस्थान ही नहीं भारत के कोने-कोने में बसे हुए हैं।
मणोराम बहीभाट व दीना ढाढी की बहियों में धामू वंश की 25 पीढ़ियों का विवरण दिया हुआ है जिनमें अंतिम नाम अमराराम का है जो बिसाऊ आकर वसा था। बिसाऊ के धामू उसी की संतान हैं। जानकारी के लिए उक्त पीढ़ियों के नाम यहां दिये जा रहे हैं |
बीराणिया से निकास
बिसाऊ के शामू परिवार का विकास बोराणिया गाव से हुआ है। यह गांव फतेहपुर से 12 किमी. उत्तर पश्चिम में स्थित है। वर्तमान में यह ग्राम पंचायत मुख्यालय है तथा सीकर और चूर जिले का सीमावर्ती गाय है। आज से करीब 500 वर्ष पहले योग' नामक एक जांगिड़ महिला ने यह गांव बसाया था। उनके वंशज (धामू शासन की अनेक शाखाए कालान्तर में सुन्नु, चूरु व सीकर जिले के अनेक गांवों व कस्बों में जाकर बस गए। वर्तमान में बोराणिया में भामू शासन के जांगिड़ ब्राह्मणों के 12 परिवार रह रहे हैं। जैसे यह करीब 350 घरो को बस्ती है। यह गांव फतेहपुर रतनगढ़ बस मार्ग पर स्थित है। इसके निकट ऐसावा, भुखरेदी आदि गांव पड़ते हैं। इसमे उच्च प्राथमिक स्तर का एक सरकारी स्कूल है। यहां 12000 कच्ची बीषा कृषि योग्य भूमि है।
बीराणियां गांव की स्थापना के सम्बन्ध में यह जनश्रुति प्रसिद्ध है कि फतेहपुर (सीका) के नवाय का एक मित्रो जो फतेहपुर का ही निवासी था, नवाब के चहेतों में से एक थी। उसके एक लड़की थी जिसका नाम बीरा था। मिस्त्री ने उसका विवाह कर दिया। दुर्भाग्य से बीरों के पति का असमय में देहान्त हो गया। यह अपने नन्हे बच्चों को लेकर अपने पिता के या आगई और वहीं रहने लगी। मिस्त्री बो अपनी बेटी का दुःख शालता रहता था और उसके बच्चों के भविष्य की चिंता बनी रहती थी।
एक दिन नवाब ने उसकी उदासीनता का कारण पूछा तो मिस्त्री ने अपनी विधवा बेटी की व्यथा-कथा सुनाई और उसके व उसके बच्चों के भविष्य के प्रति चिता जताई। नवाब ने बीरां को गुजारे के लिए 1600 बीघा जमीन दे दी। बीरां अपने बच्यों को लेकर वहीं बस गई और कृषि को आय से अपने जीवन के दिन काटने लगी। धीरे-धीरे अन्य जाति के लोग भी वहां आकर बस गए। इस प्रकार एक छोटी बस्ती ने गांव का रूप धारण कर लिया। उस गांव का नाम बीरों के नाम पर बौराणिया पड़ा। आज भी उस गांव में उसके पुत्रों के द्वारा बनाई हुए हवेली जीर्णावस्या में खड़ी है और उनको श्रम साध्य जीवन-सोला की कहानी सुना रही है।
बीरा के मातृ-पितृ पक्ष व ससुराल के वंश की जानकारी प्राप्त करने के लिए मुझे बीराणिया, येथलिया, भूखरेड़ी, लावड़ा आदि अनेक गांवों की कई यात्राएं करनी पड़ी। बीराणिया में वयोवृद्ध श्री डूंगरमल जी बामू से मिला तथा बेथलिया में धामू वंश के बहीं-भाट स्व. माणकरामजी के पोते श्री सांवतराम जी व कानाराम जी से मिला। लांगडा में दीनेखां बादी के पोते से मिला। इनमे स्व. माणकराम महीभाट की बही में लिखित वंशावली ही प्रमाणित है। इसलिए श्री सांवतराम को बिसाऊ बुलाया और तीन टितवक उनकी बहियों के आलेख पढ़ें। आलेख मुड़िया अधरों में होने में अर्थ निकालने में अधिक श्रम करना पड़ा। बही पढ़ने में श्री सावताराम ने बड़ा सहयोग दिया। नहीं में जी वंशावली मिली उसका संक्षिप्त विवरण यहां दिया जा रहा है
बीरां का पितृ पक्ष
फतेहपुर बसने से पहले वहां एक वाणी थी जिसको बोरा के पिता के पूर्वजों ने बनाई थी। बाद में नवाब फतेरखां ने उस क्षेत्र को जीतकर फतेहपुर बसाया जो आज फतेहपुर (शेखावाटी) के नाम से जाना जाता है। कालांतर में यह दाणी फतेहपुर शहर को सीमा में आगई और अपने नाम को खो दिया। उक्त दाणी के बरवाड़ियों का निश्वय ही नकयों से सम्पर्क रहा होगा। उक्त वंश में ही श्री सुखाराम का बेटा मीराराम था जिसकी बेटी मीरां थी। मोटाराम सरदार खां नवाब का पुसातिय था। उसका काल संवत 1766) से 1787 तक रहा था।
बीरा का ससुराल पक्षः
धामू पीड़ी का महरहवां पूर्वज महपाल जो सामड़ीवाल तेजा अखावत की पुत्री घोषणी को ब्याहा था। उसके दो पुत्र व बार पुत्रियां थी पुत्र-1 बीझो (बैंजो), 2. पालों, पुत्रियां-1. करमा, 2. रुपां, 3. हरखी 4 बरजों। बाँझो (बेजो) जो धनी धनावत को पुगे तुलसी को स्याहा था। उसके दो पुत्र थे चूहड़ व पाभो। पांची को आरातिधारणते मेहो गंगावत की पुडी गोरों व्याहर्टी थी। उसके चार पुत्र हुए। मुद्द 2. जालप 4. पुरण। वालय को बरवाहनी मोटागम को पुराव्याही पाचाराम गाव बुखरड़ी में बसा। उन्होंने गांव में एक बड़ा तालाब बनवाया जो आज भी कायम है। बोग को 16000 मौया जमीन नवाब की ओर से प्राप्त होने पर उसके पबसे। धामू वंश के पूर्वजों में चलाराम ने बेलासर बसाया कालू के बेटे करता ने मोभासर बसाया, तथा समद ने सांबडा और तेजा ने हाखातर बसाया। मौरी ने बीराणिया बसाया। बीरा के तीन पुत्र थे 1 लाखा, 2. मालो सागा। लाखा का विवाह बाली अचल डालावत को रेखा के साथ हुआ। उसके एक पुत्र हुआ जिसका नाम टॉर था। टोर को अड़ीचवाल गोदू धरमावत को पोती पूरा बारी थी। उसके पांच पुत्र हुए 1. जगू 2. बालो 3. किसनो पेमो अमरो। जगू के दो पुत्र हुए मेहो हुलसो। मेटो के दूसरी पत्नी से हुए बेटे बिरो, रूपों जो कादिए बस गए। अमराराम बिस्राऊ बस गया।
अमराराम का विवाह सितक सोमा की पुत्री पेमा के साथ हुआ। उससे उनके एक पुत्र स्याम्यराम हुआ। स्यापाराम का विवाह लीयणी भवि समायत की बेटी पंगा के साथ हुआ। उसके चार पुत्र हुए गोदू भादर, 3 जैसी व 4 नोपो। जैसाराम के एक पुत्र अर्जुन हुआ। किंतु आगे भादरराम, जैसाराम व नोपाराम की पीढ़ी का कहीं उल्लेख नहीं मिला।
गोदूराम को बरवाडिनी भोजा जयरामावत की पुत्री चूनी व्याही जिससे उनके तीन पुत्र हुए 1. चोखो, 2. जगू, 3. डूंगर। आगे के पृष्ठों में तीनों पुत्रों की पीढ़ियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। यहां वीरां के पुत्रों की पीढ़ी का संक्षिप्त विवरण जो माणकचन्द बहीभाट की बही में मिला, दिया गया है।
बीराणिया व उसके आसपास बीरां के प्रसंग में कई जनश्रुतियां प्रसिद्ध हैं। श्री
डूंगरमल मल जी धामू बीराणिया से मुझे जो कथानक मिला, उसका यथावत् रूप यहां प्रस्तुत किया जा जा रहा है: फतेहपुर के बरवाड़िया गोत का मोटाराम फतेहपुर के नवाब का राजमिस्त्री या मुसाहिब था। उसकी पुत्री बोरा निकट के बूखरड़ा गांव में जालिप धामू को ब्याही थी। बीरां के पति का असमय देहान्त होने पर वह अपने तीन पुत्रों को साथ लेकर अपने पिता घर फतेहपुर आगई। दो या तीन वर्ष के बाद परिवार की किसी औरत ने बोल मारा के घर 'पेट में से तो निकड़ी पण हांडी में से कोनी निकड़ी।' बीरों के बात चुभ गई। उसने अपने पिता को स्पष्ट शब्दों में बतादिया कि अब वह आपके घर का एक दाना भी प्रहण नहीं करेगी। उसके पिता ने बहुत समझाया किन्तु वह नहीं मानी और अपने बच्चों को लेकर फतेहपुर से दक्षिण-पश्चिम की ओर 12 कि.मी. दूर एक रेतीले टीले पर झोंपड़ा बना कर रहने लगी। वह बड़ी बहादुर व दबंग औरत थीः इसलिए निर्भयता के साथ रहने लगी। उसके प्रिता ने दुखी होकर नवाब साहब की सेवा में अर्ज करते हुए सारी हकीकत कह सुनाई। नवाब ने तुरन्त 16000 बीघा का कांकड़ बीरां के नाम पर काट कर वह क्षेत्र बीरां को सौंप दिया। बीरां ने किसानों को लाकर बसाया और उनको लगान पर भूमि जोतने के लिए दी।
बीरां साल में एक बार ऊन की एक बरड़ी (कंबल) बनवाकर नवाब को भेंट करती। धीरे-धीरे बीरां के नाम पर बीरांणिया गांव भलीभांति बस गया। उसके नाम पर दो जोहड़े छोड़े हुए हैं एक को 'बीरबाना' कहा जाता है तथा एक पच्चीस बीघा की जोहड़ी छोड़ी हुई है जिसे 'खात्याणी' नाम से पुकारते हैं।
श्री डूंगरमल जी बीरां के तीन पुत्रों के नाम नहीं बता सके और उससे आगे की पीढ़ी की कड़ी को भी जोड़ नहीं सके। टोर की पीढ़ी का पुरखा बिसाऊ गया बताते हैं, ऐसा डूंगरमल जी ने अपनी यादों को संजोते हुए बताया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि दीनेखांव ढाढी की बही में हमारी बिसाऊ की पीढ़ी के साथ टोर का नाम दिया है, वह सही है। निःसन नेःसन्देह यह तथ्य स्पष्ट है कि बिसाऊ आने वाला प्रथम पुरखा अमराराम धामू ही था। उन्होंने बताया कि टोर के चार पुत्र थे। एक पुत्र बीराणिया रहा। दूसरा, तीसरा व चौथा क्रमशः नौरंगसर (सालासर), हरसावा व सधीणसर बस गए। बीराणिया के वंश से ही रामू व जीवण दो भाई रतनगढ़ गए। बीराणिया से ही रामगढ़ शेखावाटी गए। सधीणसर से लांवड़ा, दीनारपुर, येथलियो व वीरमसर गए। नौरंगसर वाले वंश से सालासर, झिलमिल, मांडोली व रणमिलास चले गए। हरसावा वंश के हरसावा में ही रहे। इस प्रकार बीरां के वंशजों का नाल पूरी शेखावाटी क्षेत्र में फैल गया। बीरां व उसके पुत्रों की धाक आसपास के क्षेत्र में जमी हुई थी। उनकी वीरता के अनेक किस्से लोक मुख पर हैं। इसी कारण आज भी बीराणिया के धामू 'नाळ-पाळ के धणी' कहलाते हैं।
आगे चलकर बीराणिया गांव पड़ियारा के ठाकुरों को देदिया गया। पड़ियारा के ठाकुरों ने वहां के किसानों पर अनेक अत्याचार किए। बीकानेर महाराज उनसे नाराज हो गए और उनको पकड़ने के लिए घुड़सवारों को भेजा। पड़ियारा के ठाकुर फतेहपुर नवाब की शरण में आ गए और सैनिक सेवा वा देने देने लगे। बाद में नवाब ने उनको बीराणिया गांव दे दिया। पड़ियारा के ठाकुरों का एक छोटा सा गढ़ बीराणिया में बना हुआ है।
बीराणिया से बिसाऊ :
बिसाऊ में हमारे वयोवृद्ध दादाजी श्री घड़सीराम जी जिनका स्वर्गवास 95-96 वर्ष की उम्र में हुआ था, से मालूम हुआ कि बीराणिया से बिसाऊ आने वाला प्रथम व्यक्ति अमरा था। दीने खां दाढी व बहीभाट की बही में दी गई वंशावली के अनुसार
बिसाऊ आने वाला प्रथम पूर्वज अमराराम था। हरिद्वार के पंडों की बही में संवत् 1895 में बिसाऊ के हामारे प्रथम पूर्वज अमरा का नाम अंकित है। यह भी संभव है कि बोरो के वंशजों में से कोई दो भाई सर्वप्रथम बिसाउ आये हों, कुछ समय बाद एक भाई वापस बीराणिया चला गया हो किन्तु यह तो प्रमाणित है कि बिसाऊ में स्थायी निवास करने वाला प्रथम व्यक्ति अमरा ही था जिसके मरणोपरान्त उसके फूल हरिद्वार में संवत् 1895 में प्रवाहित किए गए थे।
बिसाऊ में अमराराम कब आए, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। हां, कुछ तथ्यों के आधार पर उनके समय का निर्धारण हो सकता है। जिनको सत्य के निकट कह सकते हैं:
1. शार्दूलसिंह के सबसे छोटे पुत्र केसरी सिंह ने बिसाऊ का गढ़ बनवाया था जो संवत् 1812 तक बन कर तैयार हो गया था। उसके बाद कस्बे के चारों ओर चारदीवारी बनवाई गई तथा चार दिशाओं में चार बड़े लोह-जड़ित दरवाजे बनवाए गए। बीरां के वंशज लोह के काम के दक्ष कारीगर थे। संभव है कि गढ़ के दरवाजे बनाने के लिए उनको बीराणिया से बिसाऊ बुलाया गया हो। 2. गढ़ निर्माण काल में ही बिसाऊ में बड़े-बड़े प्रसिद्ध सेठों को लाकर बसाया गया था। उन्होंने बिसाऊ में बड़ी-बड़ी हवेलियों का निर्माण कराया जो रक्षात्मक स्तर में गढ़ के समान ही सुदृढ़ होती थी। उस समय अधिक कारीगरों नी होती की आवश्यकता रही होगी। लोह-जड़ित मुख्य दरवाजों को बनाने के लिए हमारे पूर्वज अवश्य आये होंगे।
इन सब तथ्यों के आधार पर अमराराम सहित हमारे पूर्वजों का बिसाऊ आकर बसने का समय वि.सं. 1800-1850 लगभग निर्धारित किया जा सकता है। आगे उनकी वंशावली दी जाती है जो मणकचन्द बहीभाट की बही में दी गई है :
श्यामाराम के द्वितीय पुत्र भादरराम एक वीर सैनिक थे। वे दिल्ली में ब्रिटिश सरकार की नौकरी करने लगे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत में अंग्रेजों का राज्य पूरी तरह स्थापित हो चुका था और शान्ति स्थापना में एक वर्ष लगा था। उस समय भादरराम दिल्ली में ब्रिटिश तोपखाने में अपनी सेवाएं दे रहे थे। एक अंग्रेज अधिकारी उनकी योग्यता से बड़े प्रसन्न थे। तोपगाड़ियों के पहियों में लगने वाली लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी तो उसके लिए अंग्रेज अधिकारी ने भादरराम को कार्यभार सौंपा। तोपगाड़ियों के पहियों में लगने वाली लकड़ी एक विशेष वृक्ष की होती थी जो कश्मीर में पाया जाता है। भादरराम कश्मीर गए और वृक्षों के निशान (मार्का) करके आए। बाद में उन वृक्षों को कटवाकर दिल्ली लाया गया और उनके लड्डों को चांदनी चौक, जहां पहले पानी भरा रहता था, में डालकर रखा गया। भादरराम की देखरेख में ही उन लड्डों की चिराई करके तोपों के पहिए बनाए गए जो बड़े सुदृढ़ व दीर्घकाल तक काम देने वाले साबित हुए।
भादरराम सन् 1880 ई. में सैनिक वेश में घोड़े पर सवार होकर यात्रा करते हुए बिसाऊ आये थे। कुछ दिन अपने भाइयों एवं भतीजों के साथ बिता कर वापस दिल्ली चले गए। उसके बाद फिर कभी लौटकर नहीं आए।
श्यामाराम व उनके पुत्र तोप बनाने के कारीगर थे। बिसाऊ ठिकाने के अलावा श्यामाराम के पुत्र गोधूराम को एकबार लुहारु नवाब ने बुलवाया। वे लुहारु नवाब के पास गए। लुहारु नवाब के पास एक मुसलिम लुहार भी तोप बनाने के लिए आया हुआ था। वह बहुत सुन्दर चौला व पायजामा पहने हुए था किंतु गोधूराम तो मोटी धोती व अंगरखी पहने हुए थे। लुहारु नवाब का ध्यान गोधूराम की ओर नहीं गया; क्योंकि वे एक साधारण धोती पहने गंवारु व्यक्ति लग रहे थे। गोधूराम तुरन्त समझगए और नवाब का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा- 'नवाब साहब ! यदि कपड़े देखने हैं तो लुहार के देखिए शौक से, किंतु कारीगरी के हाथ देखने हैं तो मेरे हाथ देखिए।' यह सुनकर लुहारु नवाब बड़े प्रभावित और प्रसन्न हुए। उन्होंने गोधूराम को तोप बनाने का आदेश दे दिया। गोधूराम वहीं रहने लगे और काम करने लगे।
एकदिन गोधूराम लोहा गला रहे थे। उनका पूरा ध्यान ताव परखने में लगा था कि लुहारु नवाब का दस वर्षीय छोटा पुत्र व्यवधान डालते हुए बतियाने लगा। गोधूराम को बड़ा क्रोध आया और उसके एक थप्पड़ मार दिया। बच्चा रोता हुआ नवाब साहब के पास गया। नवाब साहब का चेहरा तमतमा उठा और तेज कदमों के साथ चलते हुए गोधूराम के पास आए और बोले-'तूने बच्चे के थप्पड़ मारने की हिम्मत कैसे की।' गोधूराम ने बडे धैर्य से उत्तर दिया- 'नवाब साहब ! मेरा ताव आया हुआ था। लोहे के गलने की प्रक्रिया में ताव को बड़ी पैनी दृष्टि से देखकर पहचाना जाता है। यदि उस में कुछ क्षणों का भी विलम्ब हो जाय तो सारी मेहनत व्यर्थ चली जाती है। ताव आने पर किसी प्रकार का व्यवधान सहन नहीं होता कारीगर से। ढ़लाई हो चुकी है, एक काम पूरा हुआ। अब मैं आपके सामने दण्ड भोगने के लिए तैयार हूँ। आप जो दण्ड देना चाहे यह सुनकर नवाब साहब का क्रोध काफूर हो गया और उन्होंने गोधूराम को गले लगा लिया। इस प्रकार गोधूराम ने लुहारु नवाब के यहां तोप निर्माण का काम पूरा करके पुरस्कार प्राप्त किया।
आगे गोधूराम के तीनों पुत्रों के वंशजों का विस्तार से विवरण दिया गया है।
गोधूराम जी के प्रथम पुत्र चोखाराम जी के तीन पुत्र हुए जिनका वंश बिसाऊ के धामू परिवार का बड़ा परिवार बना। उनका प्रथम पुत्र लिखमाराम जी, द्वितीय पुत्र दूला राम जी व तृतीय पुत्र मोहनराम जी। आगे तीनों परिवारों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है:
1. लिखमाराम जी
चोखाराम जी का वंश
लिखमाराम जी के दो पुत्र थे 1. किसनाराम जी 2. खेताराम जी। किसना राम जी के तीन पुत्र हुए-गोपीराम जी, स्योजीराम जी व डालूराम जी। खेताराम जी के संतान न होने के कारण उन्होंने डालूराम जी को गोद ले लिया।
(क) गोपीराम जी :
गोपीराम जी अपने वक्त के नामी कारीगरों में से एक थे। उनके एक पुत्र झुंथाराम हुआ था लेकिन युवावस्था में ही गुजर गया। उनके तीन पुत्रियां थी-मूंगी, सरस्वती व नारायणी जो रामगढ़ ब्याही थी। गोपीराम जी के कोई पुत्र न रहा। शिवनाथ राय जी ने अपने बड़े पुत्र श्री नागर मल जी को उनकी ओर गोद कर दिया। गोपीराम जी वृद्धावस्था पाकर स्वर्गवासी हुए।
नागरमल जी :
बनाने का काम करते थे। कुछ समय के लिए आपने कार पेन्टरी का काम भी किया। 25 वर्ष तक सीमेन्ट फैक्ट्री सवाईमाधोपुर नौकरी करके वहां से सन् 1980 के आसपास रिटायर होकर बिसाऊ आगए। आप मशीनरी काम व बिजली के काम के कारीगर रहे हैं।
शिवनाथ राय के जेष्ठ पुत्र नागरमल जी अपने पिता के साथ चांदी के आभूषण
इनके तीन पुत्र व एक पुत्री हैं। पहला पुत्र बाबू लाल, दूसरा पुरुषोत्तम व तीसरा देवकरण है। पुत्री संपत्तिदेवी नवलगढ़ ब्याही है। बाबूलाल :
बाबूलाल जी की फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में श्री हनुमान जी की पुत्री से शादी हुई। आपने मेट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद कृषि विभाग, राजस्थान में नौकरी ली। वर्तमान में कृषि विभाग में सेवारत रहते हुए कर्मचारी संघ के सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं। इनके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। जेष्ठ पुत्र कमलेश रतनगढ़ व्याहा है तथा उसके एक पुत्री है। इनका दूसरा पुत्र काम सीख रहा है।
पुरुषोत्तम :
पुरुषोत्तम का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में श्री सागरजी की पुत्री त्रिवेणी देवी से हुआ। वर्तमान में उसने कोटा में घड़ी साजी व घड़ी के कलपुर्जे बेचने की दुकान कर रखी है। उसके एक पुत्र सचिन व चार पुत्रियां हैं।
देवकरण :
देवकरण ने विद्यालयी शिक्षा ग्रहण करने के बाद तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया तत्पश्चात वह सिथेटिक्स धागे के कारखाने में कार्यरत हो गया तभी से वहीं है। उसके एक पुत्र राहुल व एक पुत्री है।
(ख) स्योजीराम जी :
किसनाराम जी के दूसरे पुत्र स्योजीराम के एक पुत्र भोलाराम हुआ जो छोटी उम्र में ही चल बसा तथा एक पुत्र मोठी हुई जो रामगढ़ ब्याही थी। इस प्रकार स्योजीराम के कोई पुत्र न होने के कारण वे चूरु के धामू परिवार से शिवनाथ राय को गोद ले आए।
गोपीराम-स्योजीराम की जोड़ी का परिवार में अलग ही स्थान था। आप कई वर्षों तक बराड़ में रहकर अच्छी कमाई करके लाए। आप दोनों की चौपाल में हुक्के की गुड़-गुड़ाहट सुनाई देती रहती थी। स्योजीराम अफीम का सेवन भी करते थे। दोनों ही दक्ष कारीगर थे। स्योजीराम के पास चांदी के कलदार रुपये काफी थे। वे सुविधानुसार ब्याज बड़े का धंधा भी करते थे। दोनों भाई बात-चातुर्य में निपुण थे।
व्यंग्यात्मक भाषा का अनूठा प्रयोग उनके संवाद में सहज ही देखा जा सकता था। एक दो उदाहरण देखिए :
1. गोपीराम जी बाजरे की पोटली कंधे के पीछे लटकाए हुए आ रहे थे। एक ने पूछा-'ताऊ। पोटली में के ल्यायो है?' उत्तर मिला 'तेल ।'
2. लिपीपुती कच्ची चौपाल की दीवार पर कुछ बच्चे सरकंड़ों से लकीरें खींचते
हुए मस्ती के साथ चल रहे थे। उनको तुरन्त रोक कर कहा 'यूं मत करो। मै बताऊं गेलो। थारै माँ-बाप, भाई-बैन, ताई-ताऊ सगळा नै बुलाल्यो, फेर जोर करो। थारे अकेलां सूं गोपिए की चौपाड़ कोनी पड़े।'
गोपीराम जी का स्वर्गवास पहले हुआ तथा उनके कुछ वर्षों बाद लगभग 80-85 वर्ष की उम्र में स्योजीराम का देहान्त हो गया।
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शिवनाथराय जी :
शिवनाथ जी सीधे सादे व्यक्तित्व के धनी थे। आप सरल चित्त ईमानदार व वादे के सच्चे थे। उत्तरी दरवाजे के बाजार में आपकी चांदी के आभूषण बनाने की दुकान थी। विशेषतः आप मुस्लिम परिवार के आभूषण बनाते थे। आपको धौंकनी सदैव चली रहती और कोयलों से भरी श्रेण में दबी कुडाली में चांदी गलती रहती। उनकी दुकान पर लोग चिलम तंबाकू पीते रहते थे और काम भी होता रहता था। आप मिलनसार मितभाषी व मितव्ययी थे। इन्हीं गुणों के बल पर आपने अपने बड़े परिवार को संभाला और कामयाबी के साथ उत्तरोत्तर प्रगति करते रहे।
आपका विवाह मंडावा के सामड़ीवाल परिवार में जानकी देवी से हुआ। आपके
6 पुत्र व एक पुत्री हुई। पुत्री पन्नादेयी का विवाह लक्ष्मणगढ़ के खरादी परिवार में नत्थूरामजी के साथ हुआ। आपके पुत्रों के नाम हैं
1. नागरमल, 2. सीताराम, 3. हरिराम, 4. गंगाराम, 5. शुभकरण व 6. शकरलाल । शिवनाथ जी बुढ़ापे में भी अपनी दुकान पर नित्य जाते थे। आपका स्वर्गवास मिति बैसाख सुदी 2 सं. 2032 तदनुसार दिनांक 28.4.1975 ई. को हुआ।
1. श्री नागरमल जी :
श्री नागरमल जी गोपीरामजी के गोद गए।
2. सीताराम जी :
सीताराम जी का प्रथम विवाह चूरु के राजोतिया परिवार में मालीराम जी की पुत्री भागवती के साथ हुआ। उससे तीन पुत्र व एक पुत्री हुई-मधुसूदन, गोविन्द व मुकेश तथा गुड़ी। उसकी अपेंडीसाइट्स से अचानक मृत्यु हो गई। कुछ समय बाद सीताराम जी का दूसरा विवाह बिसाऊ के लदोया परिवार में राजू राम की पुत्री के साथ हुआ। उससे चार पुत्र व दो पुत्रियां हैं। पुत्रों के नाम हैं- धर्मदेव, गुटल, बंटी व संजय ।
सीतारामजी पहले चांदी के आभूषण बनाने व लकड़ी का फर्नीचर बनाने का काम करते थे। बाद में सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में वर्षों तक नौकरी की। वहां से त्यागपत्र देकर आप बार वर्ष तक लीबिया रहे। वहां से आने के बाद आपने कोटा के पास मुड़क सीमेन्ट फैक्ट्री में फोरमैन के पद पर कार्य किया। अस्वस्थता के कारण वह नौकरी छोड़ देनी पड़ी। वर्तमान में आप बिसाऊ में घड़ीसाजी व सिलाई मशीन की मरम्मत का कार्य करते हैं।
(1) मधुसूदन : मधुसूदन ने अध्ययन के प्रति विशेष रुझान होने के कारण वाणिज्य विषय में स्नातक उपाधि प्राप्त की। वह अध्यापकों का प्रिय शिष्य रहा। आपका विवाह नवलगढ़ के अड़ीचवाल परिवार में केसरदेव की पुत्री के साथ हुआ। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं जो विद्यालयी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। एम. क्रॉम करने के बाद आपने
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सीमेन्ट फैक्ट्री सवाईमाधोपुर में नौकरी करली। फैक्ट्री बंद होने पर आपने लुधियाना में अकाउटेन्ट के पद पर कार्य किया। वर्तमान में आप सवाईमाधोपुर की एक प्राईवेटफर्म में इनकमटैक्स विभाग को संभालते हैं।
(H) गोविन्द गोविन्द सवाई माधोपुर में नौकरी करता है। धर्मदेव जयपुर काम करता है। 1994 ई. में दोनों का विवाह धोड़ीवारा कर दिया गया। मुकेश एक यात्रा खाड़ी देश की करके लौट आया है। शेष लड़के काम सीख रहे हैं। 2
. हरिराम जी : हरिराम का विवाह झुंझुनू के बंदुखिया परिवार में स्व. गुलाब जी की पुत्री के साथ हुआ। आप फर्नीचर बनाने के दक्ष कारीगर हैं। आप पिछले चालीस वर्षों से बरगड़ (उड़ीसा) में रहते हैं। वहां आपका व्यापार अच्छा चलता है। फर्नीचर व बिजली आदि सामान की आपके कई दुकाने हैं। वहां आपका निजी मकान है और पूरा परिवार सम्पन्नता के साथ रह रहा है। आपके बार पुत्र व दो पुत्रियां हैं - बाबूलाल, सज्जन, महेन्द्र व राजू पुत्रियां ललिता व शारदा ।
सन् 1994 ई. में आपके बड़े पुत्र बाबू लाल का बम्बई में अचानक असमय में ही निधन हो गया जिससे आपको गहरा आघात लगा। बाबूलाल अपने पीछे अपनी पत्नी, दो पुत्र व दो पुत्रियां छोड़ गया। गंगाराम जी :
गंगाराम जी का विवाह चूरु के चूयेल परिवार में विलासराय की पुत्री गिन्नी देवी के साथ हुआ। आपने कई सालों तक सीमेन्ट फैक्ट्री सवाईमाधोपुर में नौकरी की। आपका मेघालय के बिजली उत्पादक कारखाने में मैकेनिक के पद पर चयन हो जाने पर सवाई माधोपुर छोड़ कर आप सपरिवार मेघालय चले गए। कई सालों तक वहां सेवारत रहे, किन्तु रक्तचाप के रोग से प्रस्त हो जाने के कारण आप कुछ समय के लिए बिसाऊ आ गए। 1984 ई. में आपका अचानक देहावसान हो गया।
इनके बड़े पुत्र श्यामसुन्दर ने बी.एस.सी. की डिमी प्राप्त करने के बाद कम्प्यूटर का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्तमान में जयपुर में अपने निजी कम्पयूटर से व्यावसायिक कार्य कर रहे हैं। दूसरा पुत्र सत्य नारायण मेघालय में सेवारत है तथा तीसरा पुत्र प्रदीप जयपुर में नौकरी कर रहा है।
शुभकरण जी :
शुभकरण जी का विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में स्व. दुर्गादत्त की पुत्री देवकी से हुआ। आप मेट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद दो साल तक राजकीय विद्यालय में अध्यापक के पद पर सेवारत रहे, किन्तु अध्यापक बनना इनको रास न आया। इसलिए नौकरी छोड़ कर स्वतंत्र काम करने की ठानी। आपने एक बस खरीदी और उसे बिसाउन-मंडावा रूट पर कई सालों तक चलाया। इसी मध्य आप स्थानीय राजनीति में
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भाग लेने लगे। परिणामतः घाटा खाकर बस को बेचनी पड़ी। आप बिसाऊ की राजनीति में सक्रिय रह कर जनहित में नगरपालिका व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते थे। संगठन के साथ हर वार्ड से अपने उम्मीदवार खड़े किए। आप अच्छे बहुमत से विजयी अपने पक्ष के तीन सदस्य विजयी होकर आपके साथ रहे। दुर्भाग्य से पूर्ण हासिल नहीं कर हुए तथा से पूर्ण कामयाबी पाये। बिसाऊ में एक सच्चे व ईमानदार राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में आपकी पहचान है।
आपने पूर्वी दरवाजे के निकट आटा चक्की व रुई की मशीन लगा रखी है। बिसाऊ की अधिकांश संस्थाओं के आप पदाधिकारी या सदस्य हैं। बिसाऊ में टशहरे पर रात्रि रामलीला का प्रारम्भ (1992) करने का श्रेय आपको ही है। आपने बिसाऊ स्टेण्ड की अनेक बार समीक्षा करके अनेक सुधार कार्यक्रम लागू किए। आप कई बार विदेश (मसकत) भी हो आए हैं। वर्तमान में आप बिसाऊ में सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक जागृति लाने में संघर्षरत हैं।
आपके एक पुत्र व दो पुत्रियां हैं। पुत्र परमेश्वर बहरोड़ में स्थापित स्टील पाइप फैक्ट्री में सेवारत है। उसका विवाह झुंझुनू के दनेवा परिवार में स्व. श्री मन्नालाल जी पौत्री व श्री सांवरमल जी की पुत्री किरण से दिनांक 20.6.95 को हुआ।
की
शंकरलाल :
शंकरलाल का विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में श्री हनुमान प्रसाद की पुत्री से हुआ। आपने कई सालों से जयपुर में एक छोटा कारखाना कर रखा है। नयाखेड़ा में आपका निजी मकान है। आपके एक अपंग पुत्र (मनोज) है जो महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।
(ख) खेताराम जी: लिखमाराम के द्वितीय पुत्र खेताराम के कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने अपने बड़े भाई किसनाराम के तृतीय पुत्र डालूराम को गोद ले लिया। किन्तु डालूराम के भी कोई पुत्र नहीं हुआ। अतः उन्होंने केसूराम के पौत्र तोलाराम को गोद लिया।
तोलाराम :
तोलाराम जी दूल्हाराम के वंश में केसूराम जी के पौत्र तथा चूनाराम जी के पुत्र हैं। डालूराम जी का स्वर्गवास हो जाने के बाद आप स्थायीरूप से जगतपुरा (बिसाऊ) में रहने लगे। जगतपुरा में आपका स्वतंत्र मकान है। आप प्रारम्भ में लकड़ी का काम करते थे, फिर शिवनाथ राय की दुकान पर चांदी का काम करने लगे। कुछ सालों बाद स्व. मन्ना लाल जी उनको अपने साथ दरभंगा ले गए। सन 1953-54 के आसपास आप सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी करने लगे। वहां से सेवानिवृत्त होकर बिसाऊ आ गए। वर्तमान में आप जगतपुरा (बिसाऊ) रह रहे हैं। आपका विवाह चूरु के चोयल परिवार में पूर्णी देवी के साथ हुआ। आपके तीन पुत्र व दो पुत्रियां हुई: पुत्र नरदेव, निरंजन व विजय ।
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1. नरदेव :
बिसाऊ से हाईस्कूल उत्तीर्ण करके आपने टेक्नीकल प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा बिजली फोटिंग का कार्य करवाने लगे। आप उक्त कार्य के कन्ट्रेक्टर बने तथा आपने एल. फार्म प्रमाणित करके देने का अधिकार प्राप्त किया। अनेक वर्षों का अनुभव प्राप्त करने के बाद आपकी योग्यता इंजीनियर के समकक्ष मानी जाने लगी। फलतः आपने राजस्थान, हरियाणा, यू.पी. व हिमाचल प्रदेश में स्थापित सिथेटिक्स धागे की अनेक फैक्ट्रियों में योग्यता एवं कुशलता पूर्वक कार्यभार संभाला। इसके बाद आपने जयपुर में अपना स्वतंत्र काम भी प्रारम्भ किया। आपका अचानक हृदय गति रुक जाने के कारण दिनांक 14.7.94 को जयपुर में देहान्त हो गया।
आपका विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में हुआ। आपके पांच पुत्र व एक पुत्री हैं। आपके पुत्र भी जयपुर में काम कर रहे हैं। तीन पुत्रों व एक पुत्री का विवाह आप कर गए। आप जयपुर में एक सामाजिक कार्यकर्ता भी रहे। 1. पवन कुमार : नरदेव का प्रथम पुत्र पवन कुमार का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया
परिवार में श्री घीसाराम की पुत्री से हुआ। आप जयपुर में अपना निजी वर्कशाप चलाते हैं। आपके तीन पुत्र हैं। 2. द्वितीय पुत्र सुशील कुमार गुढ़ा के समीप की ढाणी (हुकमपुरा) में व्याहा है।
आप जयपुर में ही काम कर रहे हैं। आपके एक पुत्र है। तृतीय पुत्र सतीश कुमार जयपुर में ब्याहा है और वहीं तकनीकी कार्य में संलग्न है। 3.
4. चतुर्थ जी पुत्र मनोज कुमार का विवाह झुझुनू के काला परिवार में स्व. मातूराम की पौत्री के साथ हुआ। आप भी जयपुर में अपने भाइयों के साथ कार्य कर रहे हैं।
. पंचम पुत्र आलोक अध्ययन छोड़ कर तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है।
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2. निरंजन लाल :
निरंजन का प्रथम विवाह झुंझुनू के बंदूखिया परिवार में स्व. गुलाब राय की पुत्री के साथ हुआ। उसके एक पुत्री हुई। पुत्री जन्म के समय ही उसकी पत्नी का देहांत हो गया। अतः उसका दूसरा विवाह चूरु के भिराणिया परिवार में श्री माधव जी की पुत्री के साथ हुआ। माधव जी ने चूरु के जलदाय विभाग में उनकी नियुक्ति करवाई। इनकी पत्नी राजकीय सेवा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। निरंजन के चार पुत्रियां व दो पुत्र हैं।
3. विजय :
विजय कुमार का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में श्री परमेश्वर जी की पुत्री के साथ हुआ। आप एक कुशल कारपेन्टर हैं। आपके दो पुत्र-पुत्रियां हैं।
2. दूल्हाराम
चोखाराम जी के द्वितीय पुत्र दूल्हाराम जी के चार पुत्र हुए-केसूराम जी, नन्दलाल जी, भींवाराम जी व त्रिलोकराम जी।
1. केसूराम जी :
इनके दो पुत्र हुए-रामू जी व चूनाराम जी। रामूजी का देहान्त असमय में ही हो गया। चूनाराम जी का विवाह मलसीसर में महादेवी के साथ हुआ। उनके तीन पुत्र हुए-भूराराम जी, हरदेवा राम जी व तोलाराम जी। भूराराम जी विकलांग थे तथा युवावस्था में ही उनका देहान्त हो गया। तोलाराम जी डालूराम जी के गोद चले गए। अतः चूनाराम जी के पास हरदेवा राम जी रहे।
हरदेवाराम जी :
हरदेवाराम जी का प्रथम विवाह गोडिया गांव में हुआ था। कुछ समय बाद उनकी पत्नी चांद देवी का असमय निधन हो गया। उनके श्वसुर ने उनका दूसरा विवाह अपनी भतीजी गुलाब के साथ कर दिया।
हरदेवाराम जी सोने चांदी के आभूषण बनाने के दक्ष कारीगर थे। वे काफी सालों तक विलासपुर में अपनी दुकान चलाते रहे। उनके पास अन्य कारीगर भी काम करते थे। किन्तु अफीम के दुर्व्यसन ने उन्हें दुर्बल बना दिया। फलतः उन्हें वह स्थान छोड़ना पड़ा। बाद में अनेक स्थानों पर व्यवसाय चलाने का प्रयत्न किया किन्तु सफलता नहीं मिली। निर्बलता के कारण शीघ्र ही उनका स्वर्गवास हो गया। वे अपने पीछे अपनी पत्नी व एक पुत्र छोड़ गए।
सत्यनारायण :
बाल्यावस्था में ही इनके पिता का साया इनके सिर से उठ चुका था। तोलाराम जी की देखरेख में इनका बचपन बीता। प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करके काम सीखना प्रारम्भ कर दिया। आप श्री तुलाराम जी के कारखाने में कई वर्षों तक काम करके कुशल टर्नर व फीटर बन गए। अब आप अपने परिवार का व्यय स्वयं चलाने लग गए। किन्तु आप महत्वाकांक्षी थे, इसलिए दूरदर्शिता से काम लिया और अच्छी कमाई करने हेतु खाड़ी देशों में चले गए। एक दशक तक विदेशों में रह कर अर्थ संचय किया। बाद में अपनी महत्वाकांक्षा को साकार रूप देने के लिए जयपुर आकर विश्वकर्मा क्षेत्र में एक प्लाट खरीदा। सन् 1984 ई. में उस प्लाट पर अपना कारखाना स्थापित किया। विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि आपने अपने कठोर परिश्रम व लगन से स्वयं के व्यवसाय को विकसित किया। धामू परिवार में तोलाराम जी के बाद उनकी कार्यशैली व आकांक्षानुसार सत्यनारायण जी को द्वितीय स्थान दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। आपके कारखाने में वायर डाइंग मशीन व ग्रेनाइट कटिंग मशीन तैयार की जाती है। आपके कारखाने का नाम है :
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राजस्थान प्रोसेर्स सी. 124 (बी), रोड़ नं. 1-ए. विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र, जयपुर
आपका प्रथम विवाह चूरु के चोयल परिवार में श्री आसाराम जी की पुत्री के साथ हुआ। उससे दो पुत्र व दो पुत्रियां हुई। बड़ा पुत्र अनिल जो रतनगढ़ ब्याहारे कारखाने में काम करताहै और उसे संभालता भी है। छोटा पुत्र सुनील दो वर्ष 1 you परत होकर अकाल मृत्यु का मास बन गया। उक्त दुर्घटना के कुछ मास पूर्व हसे सत्यनारायण जी की पत्नी का असमय में ही स्वर्गवास हो चुका था। आप दूसरी पत्ते सीकर से विवाह करके लाये। उससे दो पुत्र हैं। दुःख है कि श्री सत्यनारायण का बढ़ा पुत्र अनिल भी दिनांक 24.11.95 को एक दुर्घटना में काल का मास बन गया।
2. नन्द लाल जी :
केसूराम जी का भाई नन्दलाल जी के एक पुत्र बुधराम जी हुए जिनका युवावस्था में ही देहान्त हो गया। उनके स्थान पर सधीणसर से गोद लाये। उसका नाम बुधराम था। उन्होंने कई वर्षों तक बराड़ में रहकर अच्छी कमाई की। वे लकड़ी के काम के कारीगर थे। बुधराम जी के एक पुत्र हुआ। उसका नाम सोहन लाल था।
सोहन लाल जी :
सोहन लाल जी काष्ठ-कला के अलावा स्वर्ण आभूषण बनाने के कारीगर थे। उनकी दिल्ली में प्रसिद्ध दुकान थी। उस समय समाज में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। वे गांधी जी के विचारों से प्रभावित हुए और कांग्रेसी बन गए। वे दैनिक समाचार पत्रों के नियमित पाठक थे। ठिकाने के ठाकुरों व उनके कर्मचारियों के वे कटु आलोचक थे। कई वर्षों तक उनकी कानपुर में भी दुकान रही किन्तु विफलता ही हाथ लगी। बाध्य होकर उनको जन्मभूमि बिसाऊ लौटना पड़ा। उसके बाद वे फिर कभी बाहर नहीं गए। सोहन लाल जी का विवाह फतेहपुर के भीराणिया परिवार में हुआ था। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हुई। बड़े पुत्र का नाम बजलाल व छोटे पुत्र का नाम जानकी प्रसाद
है। बड़ी पुत्री का नाम गिन्नी देवी व छोटी पुत्री का नाम गीतादेवी है। चारों संतानों को
छोटी अवस्था में छोड़ कर उनकी माताजी चल बसी। सोहन लाल जी की माताजी ने
उनका लालन पालन किया।
आप सुधारवादी विचारों के पक्षधर व शिक्षा प्रेमी थे। आपने अपनी पुत्रियों के वर तलाश ने में दूरदर्शिता का परिचय दिया।
1. ब्रजलाल :
सोहन लाल जी के बड़े पुत्र बज लाल का विवाह बगड़ के सींवाल परिवार में हुआ। आप अपने पिता के साथ दिल्ली व कानपुर में सोने के आभूषण बनाने का काम करते थे। बाद में सीमेन्ट फैक्ट्री सवाईमाधोपुर में नौकरी करली। वहां से रिटाबर होकर बिसाऊ आ गए। आपके एक पुत्र व दो पुत्रियां हैं। उनके पुत्र राजेश का विवाह चूरु के चोयल परिवार में हुआ किन्तु दो साल के बाद आंतरिक कलह व मतभेद के कारण
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विवाह विच्छेद हो गया। उनका दूसरा विवाह दिल्ली में हुआ। दुर्भाग्यवश उसका देहान्तु हो गया। बजलाल की पत्नी का देहान्त इससे पूर्व दिल्ली में हो चुका था। वर्तमान में राजेश सीकर में स्थापित सीमेन्ट फैक्टी में नौकरी करता है।
2. जानकी प्रसाद :
सोहन लाल जी के दूसरे पुत्र जानकी प्रसाद का विवाह अलसीसर के बरखिया परिवार में श्री हुकमो जी की पुत्री पतासीदेवी के साथ हुआ। आप भी अपने पिता के साथ दिल्ली व कानपुर रहे। बाद में आपने सीमेन्ट फैक्ट्री सवाईमाधोपुर में नौकरी करली। वहां से रिटायर होकर बिसाऊ आगए। आप सीधे सादे स्वभाव के व्यक्ति हैं। आपके
चार पुत्र हैं-1. नवल, 2. पूनम, 3. महेन्द्र, 4. नटवर। नवल ने मेट्रिक उत्तीर्ण करके आई.टी.आई. प्रशिक्षण प्राप्त किया। तत्पश्चात उसने तोलाराम जी के कारखाने में एने में टर्नर का काम किया तथा अन्य कारखानों में जाकर भी अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद मारुती कंपनी, दिल्ली में उसकी नियुक्ति हो गई। उसको कम्पनी
की ओर से प्रशिक्षण हेतु जापान भेजा गया। नवल का विवाह रामगढ़ के मौसण परिवार में श्री विश्वम्भर लाल की पुत्री के साथ हुआ। उसके दो पुत्र हैं- दीपक व जयकिशन। पूनम का विवाह रामगढ़ के जयद्रथ की पुत्री के साथ हुआ। उसके दो पुत्रियां है। महेन्द्र ने ने बी.ए. उत्तीर्ण करके लाइब्रेरियन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्तमान में वह दिल्ली के एक पुस्तकालय में सेवारत है। उसका विवाह इंडलोद के श्री रामकुमार जी की पुत्री के साथ हुआ। उसके एक पुत्र है। नटवर ने आई.टी.आई. का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया। वर्तमान में वह दिल्ली में भी कार्यरत है।
(ग) भींवाराम जी :
दूल्हाराम जी के तृतीय पुत्र भीवाराम जी का विवाह निराषनू के पेमाराम जी की बहिन से हुआ था। उनके एक पुत्री लक्ष्मी हुई। वह दसुंतपुरा ब्याही गई। भीवाराम जी के कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने बीजाराम जी के पुत्र शिवलाल को गोद ले लिया। शिवलाल जी :
यद्यपि शिवलाल जी गोट चले गए थे तथापि अपने भाई रेखाराम जी के साथ सदैव मिलजुल कर रहते थे। दोनों भाइयों को रांची में सांझे में दुकान थी। दुकान में सोने-चांदी के आभूषण बनाने का काम होता था। दुकान में अनेक कारीगर काम करते थे। उस समय रांची में उनकी प्रसिद्ध दुकान थी। मारवाड़ी सेठों में उनका बहुत सम्मान था। बाद में शिवलाल जी ने बिसाऊ में दुकान करती। भाई रेखाराम रांची वाली दुकान को संभालते रहे। सन 1945 ई. में घाटा खाकर शिवलाल जी को बिसाऊ छोड़ देना पड़ा। वे पुनः रांची गए। वहां अचानक हृदय गति रुक जाने पर आपका देहान्त हो गया। आप चांदी के आभूषण बनाने के कारीगर थे। इनके द्वारा निर्मित बिसाऊ में चांदी चढ़ी मंदिर की जोड़ियां व रामलीला के चारों रूपों के मुकुट कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। 23
आपकी प्रथम पल्लो से एक पुत्र हुआ जिसका नाम मालीराम था। आपका दूसा विवाह चूरु के राजोतिया परिवार में आसाराम जी की पुत्री सूवटी देवी के साथ हुन्थ्य उनसे आपके पांच पुत्र व एक पुत्री हुई। पुत्रों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं। 1. द्वारका प्रहलाद राय, 5. रतन लाल। पुत्री अनारदेवीका
प्रसाद, 2. बंशीधर, 3. इन्दरचन्द, 4. विवाह मुकुन्दगढ़ के श्री पोकरमल जी के साथ हुआ।
1. मालीराम जी :
शिवलाल जी के जेष्ठ पुत्र मालीराम जी खिदरसर ब्याहे थे। उनकी अपनी पत्नी से कभी नहीं बनी, एतदर्थ वे हमेशा रांची रहे। वहां उन्होंने कमाया और खोय वे व्यवहार कुशल तो थे किन्तु व्यापार कुशल नहीं। आपने सरकस खरीदा और चलाया भी परन्तु वांछित फल प्राप्त न कर सके। सुफल मिले कैसे। कांटा तोल कर करे कमाई तो घड़ियों तोल कर खोई। अंत में भटकते हुए व परेशानियों से जूझते हुए सवाईमाधोपुर
नवरंग लाल :
पहुंचे और वहां सीमेन्ट फैक्ट्री में नौकरी की। सन् 1968-69 ई. में आपका देहांन्न हो गया। आपने अपनी चारों पुत्रियों का विवाह कर दिया था तथा पुत्र नवरंग लाल का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में कर दिया था।
नवरंग लाल ने कई वर्षों तक जयपुर में काम किया। उसके बाद वह सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में बेल्डर के पद पर कार्य करने लगा। पिता की मृत्यु के बाद घर का सारा भार उसके कंधो पर आ गया। बाद में वह नौकरी छोड़ कर दुबई चला गया। उसके दोनों पुत्रों ने भी दुबई में उसो कम्पनी में नौकरी करली। खाड़ी देश से अच्छी कमाई प्राप्त करके सवाई माधोपुर में उन्होंने एक अच्छा मकान बना लिया तथा अपनी
दो पुत्रियों व दो पुत्रों का विवाह कर दिया। आपके बड़े पुत्र ओइम् प्रकाश ने तृवर्षीय सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा प्राप्त करके कई वर्षों तक जयपुर में काम किया। वर्तमान में वह दुबई में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। दूसरा पुत्र राकेश दश जमा दो परीक्षा उत्तीर्ण करके पिता के साथ दुबई में काम करता रहा। वर्तमान में सवाईमाधोपुर में अपना स्वतंत्र काम करने में जुटा हुआ है।
2. द्वारका प्रसाद :
द्वारका प्रसाद का प्रथम विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में भगवानाराम
जी की पुत्री के साथ हुआ था, किन्तु उसको असमय ही मृत्यु हो गई। अतः उनका दूसरा विवाह डूंडलोद के अड़ीचवाल परिवार में मूंगाराम जी की पुत्री के साथ हुआ। स्व. मन्नालाल जी द्वारका प्रसाद को अपने साथ दरभंगा ले गए और चांदी के आभूषण बनाने का कारीगर बनाया। वहां उसने वर्षों तक काम किया। सन् 1978 ई. में वे अपने छोटे भाई इन्द्रचन्द्र को वहां छोड़कर स्वयं बिसाऊ आ गए। सन् 1984 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया। इनके चार पुत्र व दो पुत्रियां हैं। पुत्रों के नाम निम्नलिखित है: नरोत्तम लाल, राधेश्याम, पप्पू व सुनील । 24
जी की (1) नरोत्तम लाल: इनका विवाह नवलगढ़ के रोलीवाल परिवार में श्री जुगल पुत्री के साथ हुआ। इनके एक पुत्र अनिल बदो पुत्रियां हैं। वह पिछले 15 वर्षों से खाड़ी देश में रह रहा है। तथा उसने अपनी कमाई से बिसाऊ में एक अच्छा मकान भी बनवा लिया है।
(B) राधेश्याम राधेश्याम का विवाह सुल्ताना के श्री पीसाराम की पुत्री के साथ हुआ। इनके तीन पुत्र हैं कांति, नवल, व पिटू। इसने भी 10 वर्षों तक खाड़ी देश में रहकर अर्थार्जन किया। वर्तमान में वह बिसाऊ में 'शिव टिम्बर' फर्म को संभाल रहा है।
(iii) बाबू लाल (पप्पू) इसका विवाह सीरियासर गांव में हुआ। इसके दो पुत्र हैं। वह राधेश्याम के साथ शिव टिम्बर मर्वेन्ट फर्म में काम करता है। (iv) सुनील इसका विवाह मुल्ताना के श्री घीसाराम की द्वितीय पुत्री से हुआ। इसके एक पुत्र है। वर्तमान में वह खाड़ी देश में काम कर रहा है। 3. बंशीधर :
इनका विवाह झुंझुनू के दनेवा परिवार में स्व. गुलराज की पुत्री से हुआ। आपके तीन पुत्र हैं: 1. विजयशंकर, 2. रामावतार, 3. राजेश। पिता के स्वर्गवास के बाद बंशीधर रांची, दरभंगा व बेतिया रहे, फिर जयपुर आकर कारपेन्ट्री का काम करने लगे। बाद में आप सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में फीटर के पद पर नियुक्त हो गए। वहां से आपको फलौदी क्वारी भेज दिया गया। वहां आपने तन-मन के साथ काम किया जिसके फलस्वरूप एक साधारण फीटर से फोरमेन बन गए। आप डंपर आदि गाडियों की मरम्मत करने वाले विशेषज्ञ बन गए। 1976 ई. में आप स्वैच्छिक सेवा निवृत्त होकर बिसाऊ आगए और एक आरा-मशीन लगा कर निजी उद्योग प्रारम्भ किया। बाद में एक वर्कशाप स्थापित किया। वर्तमान में उनके वर्कशाप में मरम्मत का काम व लोहे के जाली-गेट आदि बनाने का काम होता है। अपने कठोर परिश्रम के बल पर आपने वर्कशाप वाला
नोहरा खरीद लिया तथा एक स्वतंत्र भवन का निर्माण भी करा लिया। 1. विजयशंकर का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में श्री नागर जी की सुपुत्री के साथ हुआ। इनके दो पुत्र व एक पुत्री हैं। बड़ा पुत्र विष्णु काम सौख रहा है व छोटा पुत्र संजय पढ़ रहा है। विजय शंकर स्वयं आरा मशीन को संभालता है। इसने आम रास्ते पर खुलेन वाली तीन दुकाने भी बनाली हैं जो किराये पर दे रखी हैं।
2. रामावतार का विवाह मंडावा के श्री महादेवजी की पुत्री के साथ हुआ।
इनके चार पुत्रियां हैं। वह वर्कशाप को संभालता है। 3. राजेश का विवाह लालासी के श्री बजरंग लाल सीदड़ की पुत्री के साथ हुआ। वह भी वर्कशाप में टर्नर का काम करता है।
4. इन्द्रचन्द : इनका विवाह झुंझनू के दनेवा परिवार में स्व. गुलराज की पुत्री से हुआ। आपके तीन पुत्र व पांच पुत्रियां हैं। स्व. मन्नालाल जी द्वारका प्रसाद के साथ इसको भी
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दरभंगा ले गए और वहीं वे भी चांदी के आभूषण बनाने का काम करने लगे। बाद में पूरी दुकान इनको सौंपकर मन्नालाल जी देश आ गए। इन्द्र चन्द ने दुकान को भली भांति संभाला तथा वह सोने के आभूषण भी बनाने लगा। स्व. मन्ना लाल जी की साख व ईमानदारी का फल इन्द्रचन्द को मिला। आपने वहीं एक मकान खरीद लिया है तथा कार्य प्रगति पर है। आपके पुत्रों के नाम हैं: रमेश चन्द्र, 2. सुभाष व 3 पवन कुमार। 1. रमेश चन्द का विवाह झुंझुनू के रोलीवाल (उदासिया) परिवार में श्री किसन लाल जी की पुत्री के साथ हुआ। वह चारपांच वर्षों तक खाड़ी देश में रहा। वर्तमान में वह दरभंगा में स्वर्ण आभूषण बनाने का कामकरता है। इनके दो
पुत्र हैं 1. अमित व
2. प्रशान्त
2. सुभाष का विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में श्री हीरालाल जी की पुत्री के साथ हुआ। इनके दो पुत्र हैं। वह अपने पिता के साथ दरभंगा में दुकान को संभालता है। इनके पुत्रों के नाम हैं सुनित व मुकेश ।
3. पवन कुमार का विवाह चूरु के चोयल परिवार में श्री जोधराज की पुत्री के साथ हुआ। इनके दो पुत्र हैं। वह भी अपने पिता के साथ दरभंगा की दुकान
में काम करता है। इनके पुत्रों के नाम मनीष व विशाल है। 5. प्रहलादराय : इनका विवाह चिड़ावा के सामड़ीवाल परिवार में श्री भगवान
जी की पुत्री के साथ हुआ। इनके दो पुत्रियां हुई लेकिन कोई पुत्र नहीं हुआ। आपने कई वर्षों तक बम्बई में काम किया। इसके बाद बिसाऊ में आकर सर्वप्रथम 'शिव टिम्बर मर्चेन्ट' फर्म की स्थापना की जिसमें उनको काफी सफलता मिली किन्तु दुर्भाग्य से इनकी पत्नी का असमय ही निधन हो गया। उनकी दोनों पुत्रियों को दादी ने पाला। उसके दुख में वह स्वयं टी.बी. रोग से ग्रस्त हो गया और दिनांक 24.4.82 को उसका असमय ही दुखद निधन हो गया।
6. रतनलाल : इनका विवाह गांगियासर के दनेवा परिवार में श्री नारायण जी
की पुत्री के साथ हुआ। आप कुशल कारपेन्टर हैं तथा वर्षों तक आपने बम्बई में काम किया। वर्तमान में आप बिसाऊ में काम कर रहे हैं। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। बड़ा पुत्र दिनेश का विवाह रामगढ़ के श्री जीवन राम मीसण की पुत्री के साथ हुआ। वह भी खाड़ी देश की कई यात्राएं कर चुका है। दूसरा पुत्र मनोज भी दो बार खाड़ी देश की यात्राएं कर चुका है।
(घ) त्रिलोकाराम जी :
दुल्हाराम के चतुर्थ पुत्र त्रिलोकाराम जी सीधे-सादे स्वभाव के व्यक्ति थे। आपके एक पुत्र पन्ना लाल हुए। पन्न लाल अंधे थे और अविवाहित थे। पिता की मृत्यु के बाद वे अपने चचेरे भाई बुधाराम के साथ रहे। उनकी जमीन रामचन्द्र सुनार को मन्दिर निर्माण हेतु दे दी गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके हिस्से का खेत बुधराम जी को मिला ।
इस प्रकार उनका वंश यही समाप्त हो गया।
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3. मोहन राम चोखाराम जी के तृतीय पुत्र मोहन राम जी तेज बुद्धि के धनी थे। वे एक
कुशल कारीगर थे। उनकी प्रथम पत्नी से एक पुत्र व एक पुत्री हुई पुत्र का नाम हुक्माराम व पुत्री का नाम जमना था। दूसरी पत्नी से तीन पुत्र व दो पुत्रियां हुई पुत्र- खूबाराम बन्द्राराम व बड़सीराम पुत्रियां असा व गौरां। वर्षों तक
1. हुकमाराम जी : हुकमाराम जी बढ़ईगिरी में दक्ष थे। उन्होंने कई आस-पास के क्षेत्रों में काम किया। आपके दो पुत्र हुए नाथूराम जी, व बलूराम जी हुकमाराम जी के स्वर्गवास के बाद उनके दोनों पुत्र भी काफी वर्षों तक बाहर ही रहे।
(क) नथूराम जी :
नघूराम जी बहुत वर्षों तक बराड़ रहे। उनके तीन पुत्र हुए जयदेव, द्वारका प्रसाद व दुर्गालाल। उन्होंने अपने धामू भाइयों के पास ही एक जमीन खरीदी और उसमे तीनों भाइयों ने अपने-अपने मकान बनवाए।
1. जयदेव जी झुंझुनू व्याहे थे। वे फर्नीचर, मोटर बॉडी तथा चांदी के आभूषण बनाने के कुशल कारीगर थे। वे करीब 1954 ई. से जयपुर रहने लग गए। उनके तीन पुत्र हुए-महावीर प्रसाद, रक्षपाल व राधेश्याम ।
1. महावीर प्रसाद चूरु व्याहा है। वह फर्नीचर बनाने का कारीगर है। उसने काफी वर्षों तक सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी की। वर्तमान में वह जयपुर कार्यरत है। उसके चार पुत्र हैं- विजय, राजू, यदु व सुशील। ही उसने अपने व्यवसाय को
2. रक्षपाल एक होनहार युवक था। अल्पावधि में उन्नत कर लिया था, किन्तु दुर्भाग्य से एक दुर्घटना में ता. 12.2.87 को उसका देहान्त हो गया।
3. राधेश्याम राधेश्याम का विवाह जयपुर के एक जांगिड़ परिवार में हुआ। उसके दो पुत्र हैं- दिनेश व विनोद। वह जयपुर में ही अपना काम कर
रहा है। जयदेव जी व उनकी पत्नी का जयपुर में ही स्वर्गवास हुआ।
ख) द्वारका प्रसाद जी : (
नथूराम जी के द्वितीय पुत्र द्वारका प्रसाद जी चिड़ावा ब्याहे। आप डीजल इंजिन
के ऑपरेटर व मरम्मत कर्ता हैं। आपने काफी सालों तक बिसाऊ के चिमनराम रामकुमार लक्ष्मी नारायण शिवचंद राय पोदार ट्रस्ट के बिजली देने वाले जनरेटर व बिसाऊ नगर में जलापूर्ति हेतु लगाए गए इंजिनों व कुए की मोटरों की देखरेख व मरम्मत करने के लिए मिस्त्री पद पर रहे। बाद में आप जयपुर आ गए। जयपुर में आपने अनेक कम्पनियों में काम किया। वर्तमान में आप अपना निजी वर्कशॉप चला रहे हैं। आपने ढ़हर के बालाजी में अपना निजी मकान बना लिया। आपके तीन पुत्र हैं: मातूराम, परमेश्वर व हरिराम ।
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(1) मालूराम तृवर्षीय इंजीनियरिंग डिप्लोमा प्राप्त करके जलदाय विभाग में नियुक्त हो गए। वर्तमान में आप जयपुर जलदाय विभाग में पदस्थापित हैं। आपके दो
पुत्र हैं-मुन्ना व मनोज। (i) परमेश्वर का विवाह सरदारशहर के मीसण परिवार में हुआ। आपका जयपुर में
(iii) निज का वर्कशॉप है। आपके एक पुत्र है। हरिराम का विवाह चूर के बोयल परिवार में हुआ। आप अपने भाई के साथ वर्कशॉप में काम करते हैं।
(ग) दुर्गालाल जी :
नाथूराम जी के तृतीय पुत्र दुर्गालाल जी का विवाह चूरु के दनेवा परिवार में हुआ। आप भी डीजल इंजिन के कुशल मिस्त्री हैं। आपने कई सालों तक बिसाऊ के पोदार ट्रस्ट में नौकरी की। बाद में आप जयपुर आगए और तोलारामजी मिस्त्री के वर्कशॉप में काम करने लगे। वहां आपने एक जिम्मेदार व्यक्ति का कार्यभार वहन किया। कठोर परिश्रम व लगन से दिनरात काम करके तकनीकी विशेषताएं हासिल की और 'दुर्गालाल मिस्त्री' के नाम से ख्याति अर्जित की। वर्तमान में तोलाराम जो के कारखाने के पास आपका एक वर्कशॉप है जिसको आपके पुत्र कैलाश चन्द्र व रमेश चन्द्र चला रहे हैं।
(i) कैलाश चन्द्र बगड़ ब्याहा है। आप अपने वर्कशॉप का सुसंचालन करते हैं। आपके पास दूर-दूर से जॉब आते हैं। युवा वर्ग में आपने अच्छा नाम कमाया है। आपके एक पुत्र है जिसका नाम कमल है। उसने स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके एक छोटी वर्कशॉप स्थापित की है। उसका विवाह 1993 ई. में जयपुर में हुआ।
(ii) रमेश चन्द्र अपने बड़े भाई के साथ वर्कशॉप में काम करता है। उसने अपनी कुशलता से कारीगरों में अपनी पहचान बनाई है। (ख) बलूराम जी :
हुकमाराम जी के द्वितीय पुत्र बलूराम जी प्रारम्भ में मजदूरी की तलाश में सरदारशहर (चूरु) में चले गए और वहीं बस गए। काफी वर्षों तक वहां रह कर अपना जीवन यापन करते रहे। उनके दो पुत्र व तीन पुत्रियां हुई 1. नागर मल, 2. किदार मल पुत्रों के बड़े होने पर बलूराम जी बिसाऊ आकर रहने लगे। 1. नागर मल जी :
बलूराम जी के वरिष्ठ पुत्र नागरमल जी बगड़ के सीदड़ परिवार में ब्याहे थे। आप बड़े सीधे-सादे व सरल प्रकृति के व्यक्ति थे। आप लकड़ी के काम में कुशल कारीगर थे। आपकी पत्नी गठिया रोग से प्रस्त थी। प्रौढावस्था में उसके हाथ पांब जुड़ गए थे जिसके कारण नागरमल जी को ही सारे गृहस्थधर्म का पालन करना पड़ता था। करते वहां से आप सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी थे। वहां आ गए और एक फ्लोवर मिल स्थापित करके अपना वानिवृत्त होकर बिसाऊ जीवन यापन पन करने लगे। आपके उनकी बड़ी पुत्री गार तीन पुत्रियां थी, कोई पुत्र नहीं हुआ। एतदर्थ उनकी मृत्यु- मृत्यु-उपरान्त
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ने उनकी सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया। घोड़े वर्षों बाद नागरमल जी की पत्नी का देहान्त हो गया। इस तरह उनका वंश आगे नहीं बढ़ सका।
2. किदारमल जी :
बलूराम जी के द्वितीय पुत्र किदारमल ४वीं कक्षा उत्तीर्ण करके लकड़ी का काम सीखने लगे। आप आकोला व्याहे थे। अतः थोड़े वर्षों बाद वे मय परिवार के आकोला बले गए और वहीं काम करने लगे। आप फर्नीचर बनाने के कुशल कारीगर हैं। अतः आपका धंधा भलो प्रकार से चलने लगा। वहां आपने अपना निजी मकान बना लिया है तथा फर्नीचर हाउस का संचालन करते हैं। आपके चार पुत्र हैं जो आपके प्रतिष्ठान को चलाने में पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। आप पचास वर्षों से वहां रह रहे हैं तथा वहीं के हो गए हैं।
आपकी बहिन वीणा अलसीसर ब्याही है। उसके लड़के बड़े होशियार है और अपना मोटर आदि का धन्धा करते हैं।
(ख) खूबाराम जी :
मोहनराम जी की दूसरी पत्नी से उत्पन्न प्रथम पुत्र खुवाराम जी उदयपुरवाटी व्याहे थे। उनकी पत्नी का नाम किस्तूरी देवी था। खूबाराम जी धामू परिवार में विशिष्ट कारीगर व कलाकार थे। वे लकड़ी व लोहे का काम तो करते ही थे, माथ ही ठिकाना विमाऊ की बूंदूखों की मरम्मत भी करते थे। उस समय उनकी जोड़ का कोई दूसरा कारीगर नहीं था। उन्होंने एक भैसा चक्की बनाई थी जिसके द्वारा कम समय में अधिकत्तम अनाज की पिसाई आसानी से हो जाती थी।
उनकी पत्नी परिवार में 'मोटली दादी' के नाम से जानी जाती थी। वह प्रतिभावान औरत थी, निरक्षर होते हुए भी साश्वरी से उच्च थी। वह नियमित रूप से चर्चा कातती थी और भजन गाती रहती थी। उसको हजारों पुराने भजन याद थे। बन्द्रसखी के पद लोक मुख पर बिखरे हुए थे। दादी ने डॉ. मनोहर शर्मा को चन्द्रसखी के अधिकांश पद लिखवा दिए। राजस्थान साहित्य समिति, बिसाऊ की ओर से 'चन्द्रसखी भजबाल कृष्ण छवि' पुस्तक का प्रकाशन हुआ जिसमें दादी की फोटो प्रकाशित है।
खूबाराम जी का स्वर्गवास बहुत पहले हो गया था जबकि दादी का स्वर्गवास उनके पोते बनवारी लाल के विवाह के समय हुआ। खूबाराम जी के चार पुत्र हुए-लक्ष्मणराम, मालीराम, हनुमान व कन्हैया लाल। उनके एक पुत्री हुई जिसका नाम द्वारिका देवी है जो रामगढ़ के मौसण परिवार में व्याही है। उसका पुत्र 'ताऊ शेखावाटी' राजस्थान का प्रख्यात हास्य एवं व्यंग्य कवि है। हनुमान प्रसाद जी को खूबाराम जी के छोटे भाई घड़सी रामजी
ने गोद ले लिया।
1. लक्ष्मणराम जी :
इनका विवाह घूरु के चोयल परिवार में पूर्णी देवी के साथ हुआ। वे चांदी के बर्तन व आभूषण बनाने का काम करते थे। इनके एक पुत्री व एक पुत्र हुए। क्षय रोग हो जाने के कारण इनका असमय में ही देहान्त हो गया।
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प्रभुदयाल : लक्ष्मण राम जी का एक मात्र पुत्र प्रभुदयाल इस्लामपुर व्याहा है। आप सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में सेवारत रहे। वर्तमान में आप सेवामुक्त होकर सवाईमाधोपुर ही रह रहे हैं। आपके तीन पुत्र हैं-विश्वम्भर, महेन्द्र व आनन्द। उनके तीनों पुत्र बम्बई, कोटा आदि शहरों में कार्य कर रहे हैं।
2. मालीराम जी :
मालीराम जी की प्रथम पत्नी फतेहपुर की थी जिसका युवावस्था में देहान्त हो गया। आपका दूसरा विवाह बिमाऊ के बरवाड़िया परिवार में बैजनाथ जी की पुत्री के साथ हुआ। दुर्भाग्य से उसका भी अल्पायु में देहावसान हो गया। उनकी तीसरी पत्नी रतनगढ़ से आई। उनसे उनके चार पुत्र हुए चौथूराम, शंकरलाल, मुन्ना व राजेश। चौथूराम अपना निजी वर्कशॉप आरके इंजीनियरिंग वर्क्स चलाते हैं तथा शंकर लाल जयपुर में मशीनों का काम करते हैं। उन्होंने जयपुर में अपने निजी मकान बना लिए हैं। मुन्ना व राजेश बम्बई में काम करते हैं। चौथुराम के एक पुत्र कमलेश है तथा शंकर लाल के एक पुत्र पंकज है। मुन्ना के एक पुत्री है तथा राजेश के एक पुत्र है। मालीराम जी ने सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी की। वहां से सेवानिवृत होकर बिसाऊ आगए। आप संगीत के शौकीन थे। आपका बिसाऊ में ही स्वर्गवास
हुआ।
3. कन्हैया लाल जी :
खूयाराम जी का चौथा पुत्र कन्हैया लाल जी का विवाह मुकुन्दगढ़ के गोविन्दराम जी की पुत्री पंचोली देबी के साथ हुआ। वे दूसरे महायुद्ध के समय सेना में भर्ती हो गए। महायुद्ध समाप्त होने पर आप फोजी सेवा छोड़कर आ गए और फिर आपने कई वर्षों तक बम्बई में काम किया। बाद में बम्बई छोड़कर सवाईमाधोपुर आ गए और सीमेन्ट फैक्ट्री में नौकरी करना शुरु कर दिया। वहां से सेवानिवृत्त होकर जयपुर आ गए। एक दशक पूर्व जयपुर में ही उनका देहावसान हो गया। आपके तीन पुत्र हैं: बनवारी लाल, गजानन्द व लाला। (i) बनवारी लाल का विवाह
बगड़ के सीदड़ परिवार में श्री बजरंग लाल जी की पुत्री के साथ हुआ। आपने वर्षों तक सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी की। फैक्ट्री बन्द हो जाने पर भी आप वहीं पर डटे रहे। सन् 1994 ई. में आप सवाईमाधोपुर छोड़कर जयपुर आ गए। आपके दो पुत्र हैं बबलू व संजय। वर्तमान समय में दोनों भाई दिल्ली में काम कर रहे हैं।
(i) गजानन्द का विवाह निराधनू के श्री नागरमल जी की पुत्री के साथ हुआ। आप जयपुर में बीमा विभाग में सेवारत हैं। आप कई सालों से जयपुर रह रहे हैं और वहीं अपना निजी मकान भी बनवालिया है। आप एक सीधे-सादे स्वभाव वाले व्यवहार कुशल युवक है। समाजोत्थान में धामू परिवार आपसे अनेक अपेक्षाएं रखता है। आपके एक पुत्र है।
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(iii) लाला का विवाह निराथन के श्री नागरमल जी की पुत्री के साथ हुआ। वह
बीमा विभाग (उद्योग) में सेवारत है। वर्तमान में वह चिड़ावा पदस्थापित है। मितभाषी होते हुए भी उन्होंने चिढ़ावा में अपने व्यक्तित्व को उभारा है। उसके एक पुत्र है।
) चन्द्राराम जी:
(ग मोहन राम जी के तृतीय पुत्र चन्द्राराम जी महानसर व्याहे थे। वे सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। मेहनत से जो कुछ मिल जाता उसे संतोष के साथ ग्रहण करके जीवन व्यतीत करते थे। वे कुशल कारीगर थे। उनके दो पुत्र हुए माधुराम व गीगाराम।
1. साधुराम जी का विवाह बेलासर में मणीदेवी के साथ हुआ। आप काष्ठकला में निपुण थे। दुबले-पतले होते हुए भी आपका हाथ सधा हुआ था। बाद में आपने डालमिया सीमेन्ट फैक्ट्री, करांची में कारपेन्टर के पद पर कई वर्षों तक काम किया। सन् 1947 ई. में भारत विभाजन पर साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे और करांची पाकिस्तान में चला गया। एतदर्थ उन्हें बिसाऊ लौट आना पड़ा। कुछ समय बाद क्षयरोग से पस्त होने पर उनका स्वर्गवास हो गया। उनके दो पुत्र हुए रामेश्वर लाल व श्री लाल। (क) रामेश्वर लाल का विवाह सूरु के बधाणिया परिवार में श्री लूणाराम की पुत्री के साथ हुआ। आप फर्नीचर बनाने के प्रथम श्रेणी के कुशल कारीगर है। आप काफी वर्षों से जयपुर रह रहे हैं और वहीं उनका निज का मकान है। आप गोविन्द देवजी के परम भक्त हैं। जहां कहीं भी साधु संतों के प्रवचन होते हैं, आप वहीं पहुँच कर उसका श्रवण-लाभ उठाते हैं। जयपुर में आपका एक 'जांगिड़ फर्नीचर हाउस' नाम से संस्थान है। आपके दो पुत्र हैं ओइम् प्रकाश व निरंजन लाल।
(i) ओइम् प्रकाश का विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में श्री गजाधर जी की पुत्री के साथ हुआ। यह टर्नर का काम करता है। उसके एक पुत्र है। वर्तमान में वह अपना निजी वर्कशॉप चला रहा है। (ii) निरंजन लाल का विवाह नवलगढ़ के सलूनिया परिवार में हुआ। वह अपने पिता के साथ काम करता है तथा फर्म का संचालन भी करता है। उसके एक पुत्र है।
(ख) श्रीलाल - साधुराम जी का द्वितीय पुत्र श्रीलाल गांगियासर ब्याहा था। वह अपने बडे भाई के साथ जयपुर ही काम करता था। वह कारपेष्ट्री में दक्ष था किन्तु उसका युवावस्था में ही देहान्त हो गया। उसके एक पुत्र है जो जयपुर में काम करता है।
2. गीगाराम जी :
चन्द्राराम जी के दूसरे पुत्र गीगाराम जी का विवाह बिसाऊ के स्व. कालूरामजी बरवाड़िया की पुत्री के साथ हुआ। आप सीधे सादे स्वभाव के होते हुए भी बड़े साहसी पुरुष थे। आप अनेक आपात विपत्तियों को झेल कर उनमें से निकलना भी जानते थे। यही कारण था कि वे अन्त तक आर्थिक एवं सामाजिक कठिनाइयों को झेलते हुए हारे नहीं और अपने मनोबल को ऊंचा बनाये रखा। आप कारपेन्ट्री का काम करते थे।
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आजादी से पूर्व आपने डालमिया सीमेन्ट फैक्ट्री, करांची में काम किया। वहां से आकर जयपुर-बीकानेर ट्रेडिग कम्पनी, जयपुर में आरामशीन पर काम किया। सवाई माधोपुर में सोमेन्ट फैक्ट्री का काम प्रारम्भ होने पर आपने जयपुर छोड़ दिया और सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी करने लग गए। ब बाद में उन्होंने धामू परिवार के अन्य भाइयों को भी वहीं बुलवा लिया। उनकी धाकड़ व्यक्तियों में गिनती होती थी। जो काम किसी से न होता वह कार्य थे अपनी दकाल के साथ पूरा करवा देते थे। आप रिटायर होकर बिसाऊ आए और वहीं पर पहले साधारण मरम्मत की दुकान खोली, बाद में रामकुमार जी धामू के नोहरे में आरा मशीन किराये में लेकर चलाई १. सन् 1991 ई. में आपका स्वर्गवास हो गया।
आपके बार पुत्र हुए-वासुदेव, मुरलीधर, राजेन्द्र व भागीरथ। वासुदेव चिड़ावा व्याहा था। विवाह के कुछ साल बाद उसका देहान्त हो गया। उसका स्थान मुरलीधर को दिया गया किन्तु उसका भी शीघ्र ही असमय में देहान्त हो गया। उसके दो पुत्र हुए-विनोद व पप्पू । विनोद चूरु व्याहा है तथा पप्पू इंडलोद व्याहा है। विनोद जयपुर में टर्नर का काम करता है। तथा पप्पू कारपेन्ट्री का काम करता है। उन्होंने अपना नियो मकान भी जयपुर में बनवा लिया है। राजेन्द्र निर्बल मानसिकता के कारण अविवाहित ही रह गया। वह जयपुर में अपनी स्वतंत्र गति मति से जीवन-निर्वाह कर रहा है। भागीरथ एक योग्य लड़का निकला। उसका विवाह नवलगढ़ के दामोदर जी की भतीजी के साथ हुआ। उसने प्रारम्भ में श्री तोलाराम जी के कारखाने में टर्नर का काम सीखा। बाद में उसे खाड़ी देश जाने का अवसर मिल गया। कई साल वहां रह कर उसने अच्छी कमाई की। उसने बिसाऊ के अपने पुराने मकानों की मरम्मत कराई तथा अपने बाड़े में दो कमरे भी बनवाए। सन् 1994 ई. में उसने जयपुर में एक मकान बनवा लिया। उसके एक पुत्र व तीन पुत्रियां हैं। पुत्र पवन कुमार स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहा है।
(घ) घड़सीराम जी :
मोहन रामजी के चतुर्थ पुत्र घड़सी राम जी मिस्त्री प्रतिभा के धनी थे। गौरवर्ण व छरहरा शरीर उनके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते थे। युवावस्था में ही वे बिसाऊ ठिकाने में राजमिस्त्री के पद पर आसीन हो गए और लम्बे अर्से तक अपनी सेवाएं दी। आसपास के क्षेत्रों में उनका नाम प्रसिद्ध था। बिसाऊ ठाकुर विष्णु सिंह के दरबारियों में उनका विशिष्ट स्थान था। बिसाऊ ठिकाना व उनके रिश्तों के ठिकानों में भी उनका अटूट विश्वास था। इसी कारण उन सब ठिकानों के काम उनके माध्यम से ही होते थे। ठाकुर विष्णु सिंह के साथ आपने अनेक दूरस्थ स्थानों की यात्राएं को।
वे लकड़ी, चांदी, सोना व जवाहरात के पारखी विशेषज्ञ थे। अतः तत्सम्बन्धी सारा काम उनकी देखरेख में ही होता था। वे घड़ीसाज थे और तलवार, भाला, बंदूछ आदि की मरम्मत भी करते थे। जाति-बिरादरी में आई समस्याओं को उलझाते-सुलझाते रहते थे। वे अपने राजकीय प्रभाव का इस्तेमाल करके अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लागू कर दिया करते थे।
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उस समय उनके घर में सब तरह का ठाठ था। आने वाले अतिथियों का अच्छा सत्कार किया जाता था। वैसे उनपर ठिकान ठकुर-सुहाती में प्रवीण चे करने में थे। इसी कारण उनका पूरा जीवन ठाकुर ठाकुरी-संस्कृति-सागर में ते-सागर में गोताखोरी में ही बीता और अनुभव के मोतियों से अंतमंजूषा को भरा। उन्होंने अपने भाइयों हरिवारों को पालने में भी बड़ा योगदान किया। अपने भाइयों के पुत्रों-पुत्रियों के के परिवा सम्बन्ध तय करने करने से लेकर विवाह संस्कार तक का पूर्ण काम स्वयं का व्ययभार उठा कर वे पूरा मय खेतों करते थे। वे व्यय का पूरा हिसाब बही में लिखते थे। बाद में संभव होता तो व्याज के वसूलते थे। वे हमेशा घर से बाहर राजकीय लिवाब में ही निकला करते थे। ठिकाने की ओर से उनको सौ बीघा बाढ़ मिला था किन्तु अपने भाइयों के को बाढ़ में नपवा लेने से खेत की जमीन में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो पाई। यहां दूरदर्शिता से काम न लेने के कारण अतिरिक्त भूमि का लाभ न मिल सका। जिसका परिणाम गृह कलह हुआ। वे भाग्यवान पुरुष थे। उनके अधिकांश जीवन काल में मनुष्य तो क्या उनकी गाय का एक बछड़ा भी नहीं मरा। हां अंतिम दशक में उनकी पत्नी व उनके पुत्र का स्वर्गवास हो गया था। वे अपने जीवन में कभी बीमार नहीं पड़े। सुन्दर व स्वस्थ जीवन ही उनकी महान उपलब्धि थी। उनका स्वर्गवास 96 वर्ष की उम्र में हुआ जो हमारे धामू परिवार में लम्बी आयु पाने का रिकार्ड है। उनका विवाह नीमच में श्रीमती लक्ष्मीदेवी के साथ हुआ किन्तु उनसे कोई संतान नहीं हुई। अतः अपने जेष्ठ भ्राता खूबाराम जी के पुत्र हनुमान जी को गोद ले लिया। लक्ष्मीदेवी ने हनुमान को पूरा मातृ स्नेह दिया। वह बहुत ही सरल व शान्त प्रकृति की महिला थी। पूरा कुटुम्ब उसे होड़ती (छोटी) दादी कहकर पुकारता था। घड़सीराम जी से पांच वर्ष पूर्व ही उसका स्वर्गवास हो गया था।
हनुमान जी : हनुमान जी ने प्रारम्भ में ठिकाना बिसाऊ में नौकरी की। बिसाऊ गढ़ में विद्युत आपूर्ति हेतु इंजिन चलाया करते थे। आप भी लकड़ी का काम, मशीनों की मरम्मत, घड़ी साजी आदि के कारीगर थे। ठिकाना समाप्त हो जाने पर आपने सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी करली। वहां से रिटायर होने के बाद बिसाऊ में ही रहे। आप बहुत कम बोलने वाले व्यक्ति थे किन्तु अफीम का नशा करते थे। आप अपने आखिरी दिनों में अपने बाड़े में रहने लग गए थे और सामाजिक सरोकारों से दूर हो गए थे। कुछेक वर्ष ऐसी परिस्थितियों में बिता कर सदैव के लिए मुक्त हो गए।
उनका विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में स्व. इन्द्रचन्द जी की पुत्री गणपति देवी के साथ हुआ। उनकी पत्नी मिलनसार व मृदुभाषी महिला थी। उसके सैकड़ों लोकगीत व भजन कंठस्थ थे। मृत्यु के अंतिम समय में शरीर की अनन्त पीड़ाओं को भोगते हुए भी वह अपूर्व चेतनास्थिति में थी। उसने अपने चारों ओर खड़ी महिलाओं एवं पुरुषों से क्षमा प्रार्थना करते हुए व परम प्रभु का स्मरण करते हुए देह त्याग किया। हनुमान जी के चार पुत्र हुए- बनारसी लाल, बसन्तलाल, बालमुकुन्द व रामजी लाल ।
1. बनारसी लाल जी :
आपका विवाह रामगढ़ के मीसण परिवार में स्व. जवाहर लाल जी की पुत्री उमरी देवी के साथ हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने कुछ महीनों तक शिक्षक के पद पर कार्य किया। किन्तु आपका रूझान मेकेनिकल जॉब की ओर था। अतः आपने बिसाऊ में आरा मशीन व मशीनी मरम्मत हेतु एक छोटा कारखाना भी लगाया किन्तुं सफलता हासिल नहीं हो सकी। अतः आप सीमेन्ट उद्योग, सवाईमाधोपुर में नौकरी करने लगे। एक दशक बाट उक्त नौकरी छोड़कर आपने स्वतंत्र रूप से काम किया। बाद में जे.के. सीमेन्ट फैक्ट्री, नीम्बाहाड़ा में नियुक्त हुए और कई वर्षों तक सफलता पूर्वक कार्य किया। वर्षों के अनुभव से आप मिनी सीमेन्ट प्लांट की मशीनों के विशेषज्ञ बन गए। वर्तमान में आप कहीं नौकरी नहीं करते हैं। स्वतंत्र रूप से सीमेन्ट प्लांट का काम मिलने पर आप अपने निर्देशन में पूर्ण करा देते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में तत्सम्बन्धी कम्पनी मालिक उनसे मिलने आते रहते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। आप पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते रहते हैं तथा साहित्य के प्रति भी रूचि रखते हैं। आपका जीवन सदैव
मौज मस्ती में बीता है। आपके पांच पुत्र हैं:
1. भगवती प्रसाद झुंझुनू के काला परिवार में व्याहा है। वह प्रारम्भ से ही जयपुर में अपने पिता के मामा के कारखाना में काम करता है। वर्तमान में कारखाने का पूरा प्रबन्ध उनके हाथ में है। आय का स्रोत अच्छा बन जाने से जयपुर में उनका निजी मकान है तथा अनेक प्लाट हैं। ये सब कड़ी मेहनत व लगन के साथ साधनों का सदुपयोग करने के सुपरिणाम है। इनके दो पुत्र हैं- प्रदीप व सुनील ।
2. गोविन्द प्रसाद चूरु व्याहा है। प्रारम्भ में ऐच्छिक जॉब न मिल इधर-उधर घूमना पड़ा। बाद में पिता बनारसी लाल जी की अनु सीमेन्ट, निम्बाहाड़ा में नियुक्त हो गए। तब से सतत वहीं इनके कोई संतान नहीं है। इसलिए अनुज अशोक की छोट पास रखते हैं। 3. सुरेश कुमार रामगढ़ व्याहा है। प्रारम्भ में पाने के कारण पर जे.के. कार्य कर कर रहे हैं। पुत्री को अपने वह इधर-उधर किसी जगह टिक कर काम नहीं कर सका। बाद में ट्रक अच्छी कमाई करने लगा। वर्तमान में उसने अपना निज भटकता ड्राइवर बन का ट्रक है। है और राजस्थान में व्यापारिक केन्द्रों पर माल ले जाता रहा और गया और खरीद लिया अशोक कुमार का विवाह झुंझुनू के बन्दूखिया पुत्री के साथ हुआ। बी.कॉम. उत्तीर्ण करने परिवार में से कार्य किया। बाद में खाड़ी देश चला गया। वहां श्री मदनलाल जी की बाद इसने अनेक जगह अस्थायीरूप कमाई की। फिर सांझे में राजगढ़ (चूरू) में सीमेन्ट पाइप विफल होने पर उसको छोड़ कर बिसार ट्यूब, पंचर चेपा आदि की एजेन्सी कई साल साल रहकर अच्छी का मिनी मिनी प्लांट बलाया। बिसाऊ लौट आया। वर्तमान वर्तमान में उसने टायर ले रखी है और राजस्थान के कई जिलों में सप्लाई करता है। इस व्यवसाय में उसे अच्छी सफलता मिली है। उनके चार पुत्रियों के बाद 1994 ई. में एक पुत्र हुआ है।
5. सतीश मंड़ावा ब्याहा है। वह जयपुर में कारपेन्ट्री का काम करता है। बीच-बीच में 'अपने अग्रज अशोक कुमार के व्यवसाय में भी सहयोग करता रहता है। उसके एक पुत्र है।
2. बसन्त लाल :
आपका विवाह चिड़ावा के सरभुदयाल जी की पुत्री के साथ हुआ। आपने कई वर्षों तक सीमेन्ट फैक्ट्री, सवाईमाधोपुर में नौकरी की। उसको छोड़कर कुछ समय के लिए अनेक स्थानों पर अस्थायीरूप से काम किया। फिर भाई बनारसी लाल ने इन्हें सीमेन्ट फैक्ट्री, निम्वाहाड़ा में फीटर के पद पर नियुक्ति दिलवादी। जनवरी, 1995 ई. में वहां से सेवा निवृत्त होकर बिसाऊ आगए। इनके एक पुत्र है। उसका नाम मनोज है। मनोज ने अपने नोहरे में एक फ्लोवर मिल स्थापित कर ली है। उसके दो पुत्र हैं।
3. बालमुकुन्द :
आपका विवाह चूरु के चोयल परिवार में हुआ। प्रारम्भ में आप लकड़ी का काम करते थे। बाद में लकड़ी के काम का ठेका लेने लगे। वर्तमान में आप उदयपुर (मेवाड़) में बिल्डिग कन्ट्रेक्टर हैं तथा वहीं अपना निजी मकान भी बनालिया है। आपके दो पुत्र हैं : मनोहर लाल व पवन कुमार।
1. मनोहर लाल का विवाह सरदार शहर मीसण परिवार में हुआ। उसने दस जमा दो परीक्षा उत्तीर्ण करके दिल्ली में चांदी का काम सीखा तथा कई वर्षों तक वहां काम किया। वर्तमान में उदयपुर में ही ताम्बे के तार सप्लाई करता है। फर्म का नाम 'सुनित एन्टर प्राइजेज' है।
2. पवन कुमार का विवाह बगड़ निवासी श्री रामजी लाल असलिया की पुत्री के साथ हुआ। वह एक प्रतिभावान छात्र है तथा विज्ञान में पी.एच.डी. कर रहा है। वर्तमान में उसने ताम्बे के तार सप्लाई करने की एजेन्सी ले ली है जिसे दोनों भाई मिल कर चला रहे हैं।
4. रामजीलाल जी :
आपका विवाह रामगढ़ के मातूराम जी की पुत्री के साथ हुआ। आप प्रारम्भ में कारपेन्टरी का काम करते थे। बाद में सीमेन्ट फैक्ट्री में नियुक्त हो गए। एक दशक बाद फैक्ट्री की नौकरी छोड़कर लीबिया चले गए। वहां कई साल तक रह कर अच्छी कमाई की; फिर छोड़कर उदयपुर (मेवाड़) लौट आए। वर्तमान में आप उदयपुर में बिल्डिंग बनाने व बेचने का व्यवसाय कर रहे हैं। आप बड़े मेहनती व लगनशील व्यक्ति हैं। आपके तीन पुत्र हैं : राजेश, प्रमोद व बंटी। राजेश विवाहित है और बैंक में सेवारत है। बंटी पढ़ रहा है। दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि दिसम्बर 94 ई. में आपके द्वितीय पुत्र प्रमोद का अचानक असमय देहान्त हो गया।
जगुजी का वंश
गोधूराम जी के द्वितीय पुत्र जगुराम जी के दो पुत्र हुए। 1. जीवणराम जी. 2. राजू वा ज्ञानाराम जी। हरिद्वार के पंडों की बही में द्वितीय पुत्र के नाम को राजू वा ज्ञानाराम लिखकर संदेह पैदा कर दिया है। कौन सा नाम सही है, पता नहीं चलता। क्योंकि दीने खां की यही में उक्त नाम का कहीं जिक्र नहीं हुआ है। नाम राजू हो या ज्ञानाराम, उस व्यक्ति का वंश आगे नहीं चला। जीवनराम जी के एक पुत्र बीजाराम जी हुए। बींजाराम जी के तीन पुत्र हुए- प्रथम हुणताराम जी, द्वितीय रेखाराम जी तथा तृतीय शिवलाल जी।
1. हुणताराम जी
इनके कोई पुत्र न था। एक लड़की थी जिसका नाम नानगी था। वह चूरु के राजोतिया परिवार में भूदाराम के पुत्र हनुमान जी को विवाही थी। उसका भरापूरा परिवार है। दुणताराम की गवाड़ी में सांवलराम के बड़े भाई पोकरराम को लाकर गोद बैठाया लेकिन कुछ समयोपरान्त वह अपने गांव लौट गया। इस तरह हुणता रामजी का वंश आगे नहीं बढ़ा।
2. रेखाराम जी :
रेखाराम जी के एक पुत्र व तीन पुत्रियां थी। बड़ी पुत्री जमना जो फतेहपुर विवाही थी, विधवा होने पर अपने पिता के घर आ गई और वैधव्य जीवन बिता कर उसने वहीं अपनी ईहलीला समाप्त की। दूसरी पुत्री मनोहरौ रामगढ़ विवाही थी, उसका भी देहान्त हो गया। तीसरी पुत्री दुर्गा महनसर विवाही थी। वह भी विधवा होकर अपने एक पुत्र व एक पुत्री को लेकर बिसाऊ आ गई। वह गुणताराम की गवाड़ी में रहने लगी। सभी धामू भाइयों के सहयोग से उसके दिन कटने लगे। उसने स्वयं मजदूरी करके (पीसना पीसकर) अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। लेखक की माताजी की प्रेरणा से ही वह अपना स्वतंत्र पारिवारिक जीवन के लक्ष्य को पास की। वर्तमान में उसका पुत्र डूंगर मल माननीय श्री तोलाराम जी के कारखाने में फीटर के पद पर कार्यरत है। दुर्गा का देहान्त जयपुर में ही हुआ।
रेखाराम जी का पुत्र गौवर्द्धन तीनों बहिनों से छोटा था। उसका व्यक्तित्व आकर्षक था। उसे गाने का बड़ा शौक था। उसका विवाह चूरु के राजोतिया परिवार में खविनी देवी से हुआ। उसके पिता रेखाराम जी रांची में बांदी के आभूषण बनाने का काम करते थे। रांची में उनकी दुकान प्रसिद्ध थी। गौवर्द्धन भी रांची में पिता के साथ काम करता था। रेखाराम जी का स्वर्गवास हो जाने पर वह अपने चचेरे भाई मालीराम जी के साथ रांची में काम करता रहा किन्तु अचानक युवावस्था में ही उसे अकाल काल का पास बनना पड़ा।
उसके मरणोपरान्त परिवार में उसकी पत्नी खींवणी देवी रही। बाद में सांवलराम जी को कांट से गौवर्द्धन के स्थान पर गोद लाया गया। उसके साथ उसकी माताजी भी आई थी। इस प्रकार उक्त परिवार में पुनः रसमय जीवन का संचार हुआ। सांवल राम के दो पुत्र व एक पुत्री हैं- श्यामलाल, रामनिवास व भगवानी देवी। अब उनका परिवार बढ़ा तो व्ययभार भी बढ़ गया था। सांवल राम काम का सामान्य जानकार था। परिणामतः आय से अधिक व्यय का भार उत्तरोत्तर बढ़ता बला गया। यह परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा था। ऐसे समय में लेखक ने सांवलराम जी को तोलाराम जी के कारखाने में नौकरी दिलवाई। उसका परिणाम बहुत फलदायी रहा। सांवलराम जी का स्वर्गवास सितम्बर 95 में हो गया।
( अ) श्यामलाल :
बड़ा पुत्र श्यामलाल अपने पिता के साथ बचपन में ही तोलाराम जी के कारखाने में रहने लगा और खराद मशीन पर काम सीखने लगा। शीघ्र ही वह एक कुशल टर्नर बन गया। उसका विवाह नवलगढ़ हुआ। धीरे-धीरे उसने अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया और स्वतंत्ररूप से काम करने लगा। पिछले दो दशकों से शास्त्री नगर, जयपुर में उसका निजी वर्कशॉप 'श्याम इंजीनियरिंग वर्क्स' नाम से चल रहा है। वह अपनी लगन व परिश्रम से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। उसने नया खेड़ा, जयपुर में अपना निजी मकान भी बना लिया है। उसके तीन पुत्र हैं-गोपाल, विष्णु व छोटू । गोपाल का विवाह नवलगढ़ के लिछमण जी अड़ीचवाल की पौत्री से हुआ। विष्णु व छोटू कारखाने के काम में हाथ बंटाते हुए अध्ययन भी कर रहे हैं।
(ब) रामनिवास :
सांवल राम जी का दूसरा पुत्र रामनिवास बिसाऊ में रहता है और कारपेन्टरी का काम करता है। उसका प्रथम विवाह जयपुर में हुआ। उसकी प्रथम पत्नी का युवावस्था में ही देहान्त हो गया। उससे एक पुत्र शरद (बंटी) है जो 'श्याम इंजीनियरिंग वर्क्स जयपुर में काम करता है। रामनिवास का दूसरा विवाह घोड़ी वारा (झुंझुनू) के रामजीलाल जाला की पुत्री से हुआ। उससे एक पुत्र संजीव (कालू) है जो पढ़ रहा है। 3. शिवलाल जी :
शिवलाल जी चोखाराम जी के वंश में भींवाराम जी के गोद चले गए। अतः इनके परिवार का विवरण चोखारामजी के वंश में दिया गया है। आगे जगुराम जी के बंश की तालिका दी जा रही है:
Dungaram Ji Ka Vansh
गोधूराम जी के तीसरे पुत्र दूगरराम जी के दो पुत्र हुए घासीराम जी व सुखाराम जी। दोनों भाई लोहे के काम के बहुत अच्छे कारीगर थे। उस जमाने में घासीराम जी हिन्दी व अंग्रेजी पढ़ना-लिखना जानते थे। सन् 1857 ई. के स्वतंत्रता संघर्ष के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त हो गया था और ब्रिटेन का सीधा शासन भारत पर हो गया था। उसके बाद भारत में पूर्ण शान्ति स्थापित हो चुकी थी और भारतीय व्यापारी विशेषतः शेखावाटी के श्रेष्ठिजन ब्रिटिश शासन से समझोता करके अपना व्यापार कुशलता से बढ़ा रहे थे। ऐसे वक्त पर लेखक के ये परदादा 1860 ई. के आसपास बम्बई गए जबकि शेखावाटी के नजदीक कोई रेल्वे स्टेशन नहीं था। सर्वप्रथम बम्बई जाने वाले हमारे वंश में यह पहला परिवार था। रामगढ़ शेखावाटी के पौद्दार (रुइया) सेठ बम्बई से विदेशों में अफीम का निर्यात करते थे। घासीराम जी व सुखा राम जी ने सेठ से अफीम की पेटियों की पेंकिंग का ठेका ले लिया और ठेके में काफी लाभ प्राप्त किया। बाद में घासीराम जी व सेठ में मित्रता हो गई थी। इसलिए उनको बराबर काम मिलता रहा और लाभ-अर्जित करते रहे। परिणामतः उन्होंने बम्बई में अपना निज का मकान बनवा लिया और उसमें अपने पूरे परिवार को बिसाऊ से बुलवाकर रहने लगे। घासीराम जी स्वभाव से भोले थे। कई वर्षों बाद यह भोलापन एकदिन गतिमान प्रगति के पथ का अवरोधक बन गया। बड़े-बूढ़ों से सुनते रहे हैं कि घासीराम जी के भोलेपन से हुई गलती के कारण सेठों से मित्रभाव व मेलजोल ही समाप्त हो गया। प्रसंग इस तरह बताया जाता है:
एक बार देश से चल कर व्यावला गायक बम्बई आये और सेठ की हवेली पहुँच गए। व्यावला गाना शुरू हो गया। सेठ के सभी प्रेमीजन नित्य व्यावला सुनने आते थे। घासीराम जी भी नित्य जाया करते थे। व्यावला उठने पर सभी लोग अपनी श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते हैं। सेठ-सेठानी ने कपड़े, गहने व नकदी दिए। घासीराम जी ने सेठ से अधिक नकद राशि भेंद में चढ़ा दी। सेठ यह जानकर घासीराम जी से अत्यधिक 44
नाराज हो गया। उसके बाद से उनमें वह मेल-मिलाप नहीं रह सका। परिणाम स्वरूप घासीराम जी का धन्धा चरमरा उठा। किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कारखाने को चलाते रहे।
दोनों भाइयों के पुत्रों ने बिसाऊ में सर्वप्रथम एक हवेली का निर्माण करवाया। बिसाऊ के जांगिड़ बाह्मणों में यह पहली पोळदार चौकबन्ध हवेली थी। हवेली का चेजा मिति कार्तिक सुदी 13 संवत् 1955 को प्रारम्भ हुआ और संवत् 1956 तक पूर्ण हुआ। एक मिस्त्री को रुपये भेजते रहे और उसीने हवेली का निर्माण कार्य पूरा कराया। लेकिन उन्होंने स्वयं आकर हवेली को नहीं देखा। बुजुगों से सुनते रहे हैं कि हमारी हवेली
1. घासीराम जी का परिवार
छप्पनिए काळ में बनी थी, यह बात उपर्युक्त संवत से सही प्रमाणित होती है। घासीराम जी निःसन्तान थे। उनके छोटे भाई सुखराम जी के तीन पुत्र हुए पेमारामजी रामदयाल जी व कुंभाराम जी। घासीराम जी ने रामदयाल जी को गोद ले लिया। घासीराम जी का स्वर्गवास कब हुआ, इसका उल्लेख उनके पुत्रों की बही में नहीं मिलता है किन्तु वे अपने समय के शिक्षित और प्रभावी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपने पुत्र रामदयाल को बम्बई में अपने साथ ही रखा। वहीं उसको प्रशिक्षण देकर कार्यकुशल बनाया। उन्होंने ही बिसाऊ वाली हवेली का चेजा चलाया था। रामदयाल जी :
रामदयाल जी अपने पिता के साथ बम्बई में काम करते थे। वे लोहे के कुशल कारीगर थे और बम्बई वाले कारखाने के संचालन में नियमित सहयोग करते रहे। घासीराम जी के स्वर्गवास के बाद सारा काम उनके सिर आ पड़ा। उन्होंने अपने भाई कुंभाराम के साथ कारखाने को बराबर सक्रिय बनाये रखा।
उनका पहला विवाह चूरु में दनेवा परिवार में हुआ था। कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी का देहावसान हो गया। उनके कोई संतान नहीं हुई। अतः रामदयाल जी का दूसरा विवाह लक्ष्मणगढ़ के प्रसिद्ध आसलिया परिवार में हुआ। उसका नाम सुन्दर था। वह सीधी-सादी व भोले स्वभाव की औरत थी। उनके दो पुत्र हुए डेडराज व मन्ना लाल। डेडराज का जन्म संभवतः मिति भादवा सुदी 11 शनिवार संवत 1962 को हुआ। किन्तु वह संवत् 1974-75 में प्लेग महामारी के कारण काल का प्रास बन गया। दूसरे पुत्र मन्ना लाल का जन्म अनुमानतः संवत् 1964-65 में बम्बई में हुआ। रामदयाल जी का स्वर्गवास बम्बई में संवत् 1975 से पूर्व हो गया था। 1.
एमट्याल जी कुंभाराम जी की बही 2. रामदयाल जी की बही में एक गीगले का जन्म व मिति का विवरण सम्भवतः वह डेडराज के जन्म का ही ब्यौरा है।
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नालाल जी :
मन्ना लाल जी संवत् 1975 की महामारी के बाद बिसाऊ में ही रहने लगे। के पिता का इनके स्वर्गवास फागुन सुदी 9 संवत् 1974 को बम्बई में हुआ तथा उनका द्वादशा मिति चैत बदी 6 सवत् 1975 को बिसाऊ में हुआ। रामदयाल जी का दाह संस्कार करने के बाद मन्नालाल जी बम्बई से बिसाऊ आ गए।
पन्नालाल जी का विवाह मिति बैसाख सुदी 3 संवत् 1981 को परिवार में आशारामजी की पुत्री को चूरु के राजोतिया सुत्री गंगादेवी के साथ हुआ। उनके विवाह के ठीक दो वर्ष बाद में उनकी माताजी का स्वर्गवास संवत् 1983 में हो गया तथा खर्च कार्तिक सुदी 7 संवत् 1983 को हुआ।
वे चांदी के आभूषण एवं बर्तन बनाने के कुशल कारीगर थे। वे शुद्धता व ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। आज भी उनकी बनाई कलाकृतियों को शुद्ध चांदी के भाव मोल लेने में किसी को अविश्वास नहीं होता। आपने आज से 60 वर्ष पूर्व दरभंगा (बिहार) में अपनी दुकान खोली। उनसे मारवाड़ी सेठों के अलावा दरभंगा महाराज ने भी अनेक कलाकृतियां तैयार करवाई। उनकी बनाई कलाकृतियों में बेल बूटों की चिताई का काम देखने योग्य होता था। आपने अपनी दुकान में तोलाराम जी को अपने पास रखा किन्तु मेकेनिक कार्य में रुचि होने के कारण कुछ समय बाद तोलाराम जी करांची चले गए। उसके बाद उन्होंने तोलाराम जी (जगतपुरा) व शिवनाथ जी के पुत्र नागरमल व सीताराम को दुकान में रखा। कुछ साल रहकर के वापस आ गए। शिव लाल जी का स्वर्गवास होने के बाद उनके पुत्रों (द्वारका प्रसाद व इन्द्रचन्द) को उन्होंने अपने पास रखा। सन् 1957 ई. के आसपास दरभंगा की भरीपूरी दुकान बिना कुछ लिए द्वारका प्रसाद व इन्द्रचन्द को सौंप कर वे बिसाऊ आ गए।
आप बहुत सीधे-सादे स्वभाव के थे तथा बहुत कम बोला करते थे। आप परिश्रमी, लगनशील, मितव्ययी तथा सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व के धनी थे। आपका स्वर्गवास दिनों 24.4.82 को हुआ। आपका सद्गुणों से भरा जीवन आज भी सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं- अमोलकचन्द, सुरेश, बसन्त देवी वी व जयश्री।
बसन्ती का जन्म संवत् 1987 में हुआ। उसका विवाह मिति फागुन सुदी 2 संवत् 2000 में नवलगढ़ के अड़ीचवाल परिवार में श्री चिरंजी लाल के साथ हुआ। उसके एक पुत्र व दो पुत्रियां हैं।
जयश्री का जन्म सन् 1946 ई. में हुआ तथा विवाह मिति चैत बदी 7 संवत 2020 दिनांक 5.3.1964 को झुंझुनू के काला परिवार में ठेकेदार बजरंग लाल जी के सुपुत्र श्री ताराचन्द जी के साथ हुआ। उसके एक पुत्र व दो पुत्रियां हैं।
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1. अमोलक चन्दः
आपका जन्म दिनांक 10 नवम्बर, 1933 ई. को हुआ। आपने 1951 ई. में बागला हाईस्कूल, चूरु से मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद 1952 ई. में ठिकाना बिसाऊ की स्कूल में अध्यापक हो गए। सन् 1954 में ठिकाना बिसाऊ के अधिग्रहण होने पर आप राज्य सेवा में आ गए। आपने शिक्षण कार्य करते हुए एमारबीएड. तक को योग्यता प्राप्त की। आपका विवाह मिति माह बदी 5 संवत् 2008 को फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में घनरामजी की पुत्री गिन्नी देवी के साथ हुआ।
आप हिन्दी व राजस्थानी के साहित्यकार हैं। आपके शोध पूर्ण लेख, कहानियां, संस्मरण, रेखाचित्र, निबन्ध, कविताएं आदि राजस्थान की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। आप प्रसिद्ध शोध पत्रिका 'वरदा' के प्रवन्ध सम्पादक हैं। आपके प्रधान सम्पादकत्व में बिसाऊ उच्च माध्यमिक विद्यालय की स्कूल-पत्रिका 'सौरभ' का प्रकाशन हुआ जिसने राजस्थान में द्वितीय स्थान प्राप्त कर पुरस्कार प्राप्त किया। आपको राजस्थानी साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से संचालित साहित्यिक समारोह पिलानी व चिड़ावा में सम्मानित किया गया। आपको बिसाऊ की श्री तरूण साहित्य परिषद्, श्री रघुवीर कला मन्दिर व धामू परिवार की ओर से साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक सेवाओं के लिए अभिनन्दित व सम्मानित किया गया। आप निम्नलिखित संस्थाओं के पदाधिकारी व सदस्य हैं:
1. केन्द्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली (राजस्थानी परामर्श मण्डल)
2. राजस्थान साहित्य समिति, बिसाऊ
4. श्री तरुण श्री रघुवीर कला मन्दिर, बिसाऊ साहित्य परिषद्, बिसाऊ
5. साहित्य संस्थान, झुंझुनू
6. श्री जांगिड़ समाज विकास समिति, बिसाऊ
1. बिसाऊ दर्शन (1980) हिन्दी
आपके प्रमुख प्रकाशन निम्नलिखित हैं:
2. 3. बिसाऊ दिग्दर्शन (1988) इतिहास
4 . गळचट (1992) निबन्ध संग्रह राजस्थानी
5. राजस्थानी कहानी संग्रह (प्रकाश्य)
आप 30 नवम्बर 1991 ई. को राजकीय सैकण्डरी स्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत रहते हुए सेवानिवृत्त हुए |
मंत्री शेखावाटी की आंचलिक कहानियाँ (1982) राजस्थानी
आपके 5 पुत्र व एक पुत्री हैं जयप्रकाश, विनोद कुमार, विमल कुमार, राकेश, सुधेश व उर्मिला।
1. जयप्रकाश :
आपके सबसे बड़े पुत्र जयप्रकाश का जन्म दिनांक 8.3.1958 ई. को हुआ। उसने उच्च प्राथमिक तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने दादाजी तोलाराम जी के कारखाने में टर्नर का काम सोखा। उसका प्रथम विवाह 1977 ई. में झुंझुनू के रोलीवाल परिवार में श्री सत्यनारायण जी की सुपुत्री प्रेन देवी के साथ हुआ किन्तु सन् 1984 ई. में पुत्र-जन्म के बाद उसका असमय में ही देहान्त हो गया। परिवार के लिए वह अपूरणीय क्षति थी। उसका दूसरा विवाह सन् 1985 ई. में झुझुनू के दनेवा परिवार में श्री किदार जी की पुत्री मंजु के साथ हुआ। उससे 4 पुत्रियां हैं। जयप्रकाश तीन चार बार खाड़ी देशों में गया। वर्तमान में उसने अपने लिए अलग से एक छोटा मकान बना लिया है।
2. विनोद कुमार :
अमोलक चन्द का दूसरा पुत्र विनोद कुमार का जन्म दिनांक 3.4.61 को हुआ। उसने मेट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद अपने दादाजी तोलाराम जी के कारखाने में टर्नर का काम सीखा। वर्तमान में वह एक कुशल टर्नर है। उसका विवाह मिति आसाढ़ सुदी 9 मंगलवार संवत् 2039 तदनुसार दिनांक 29.6.82 को बगड़ के सौदड परिवार में श्री मनोहर लाल जी की पुत्री सरोज के साथ हुआ। आजकल वह जयपुर में टर्नर के पद पर कार्यरत है। उसके दो पुत्र व एक पुत्री हैं 1. रवि, 2. बाल कृष्ण व पुत्री कविता।
3. विमल कुमार :
तीसरा पुत्र विमल कुमार का जन्म दिनांक 1.7.1963 को हुआ। उसने उच्च प्राथमिक तक शिक्षा पाकर कारपेन्टरी का काम सौखा। उसका विवाह मिति माह सुदी 5 बुधवार संवत् 2039 तदनुसार दिनांक 19.1.1983 को चूरु के जाला परिवार में श्री भगतराम जी की पुत्री इन्दू के साथ हुआ। वर्तमान में वह एक कुशल कारपेन्टर है तथा उसकी बिसाऊ में एक फर्नीचर की दुकान है। उसके दो पुत्र व एक पुत्री हैं 1. मोहन, 2. ओमप्रकाश व पुत्री गरिमा। अप्रेल, 95 में वह खाड़ी देश दुबई चला गया।
4. राकेश कुमार :
चौथा पुत्र राकेश कुमार का जन्म 1965 ई. को हुआ। वह दश जमा दो की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद औरंगाबाद (महाराष्ट्र) चला गया। वहां बिल्डिग कन्ट्रक्टर रहा। वर्तमान में वह खाड़ी देश (दुबई) में काम कर रहा है। उसका विवाह दिनांक 19 जून 1987 को चिराना के श्री सागरमल जी की पुत्री रेणु के साथ हुआ। उसके दो पुत्रियां हैं: 1. रूबी, 2. निकेता ।
5. सुधेश कुमार :
पांचवां पुत्र सुधेश कुमार का जन्म दिनांक 25.10.1969 को हुआ। उसने चमड़िया कॉलेज से सन् 1990 ई. में बी.कॉम. की डिमी प्राप्त करने के बाद कुछ महीनों तक जयपुर में काम किया। आपकल आदर्श विद्या मन्दिर बिसाऊ में अध्यापक के पद पर कार्यरत है। उसका विवाह मिति चैत बदी 7 संवत् 2047 तदनुसार दिनांक 7.3.1991 ई. को गुढ़ा-गौड़जी के सामड़ीवाला परिवार में श्री मोती लाल जी की पुत्री प्रभा देवी के साथ हुआ। उसके एक पुत्र है जिसका नाम दुलीचन्द है।
1. उर्मिला:
पुत्री उर्मिला का जन्म दिनांक अक्टूबर 1974 को हुआ। मेट्रिक कथा में प्रवेश करने के बाद वह गृहकार्य करने लगी। उसका विवाह दिनांक 13 मार्च 1994 ई. को नवलगढ़ के रोलीवाल परिवार में श्री बजरंग लाल जी के सुपुत्र श्री प्रकाश चन्द जी के साथ हुआ।
2. सुरेश कुमार :
श्री अमोलक चन्द का छोटा भाई सुरेश का जन्म सन् 1950 ई. में हुआ। वह बचपन से ही कुशाम बुद्धि था। उसने सन् 1965 ई. में बिसाऊ हाई स्कूल से विज्ञान विषय लेकर इंगलिश मीडियम से प्रथम श्रेणी में मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की तथा राजस्थान में मेरिट सूची में उसका सातवां स्थान रहा। उसने सन् 1966 ई. में नवलगढ़ कॉलेज से विज्ञान में पी.यू.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा राजस्थान की मेरिट सूची में उसका द्वितीय स्थान रहा। सन् 1971 ई. में उसने जोधपुर यूनिवर्सिटी से B.E. (Mech) Honr's की डिमी प्राप्त की। उसने कुल तीन साक्षात्कार दिए हेदराबाद, भाभा इंस्टीट्यूट, बम्बई व हिन्दुस्तान एयरोनेटिक्स लि. बंगलौर और तीनों में ही उसका चयन हो गया था। प्राथमिकता देते हुए उसने हि.ए.लि. बंगलौर में ड्राइंग आफीसर (अधिकारी) के पद पर कार्यभार संभाला। उनको प्रशिक्षण हेतु मद्रास भेजा गया, वहां साथियों के द्वारा रैगिंग करने पर उसके मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ा और वह दीमागी संतुलन खो बैठा। वह तीन महीने तक उस हालत में मद्रास व बंगलौर के चक्कर काटता रहा। अंत में बिसाऊ आगया तब तक वह पूरी तरह विश्चिक्षप्त हो चुका था। पूज्य तोलाराम जी ने उसका जयपुर में काफी इलाज कराया किन्तु पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो सका। परिणामतः उसका दिनांक 13.8.1989 ई. को देहावसान हो गया। परिवार के लिए यह एक बड़ा आघात था।
इनकी माताजी गंगादेवी का 90 वर्ष की आयु में दिनांक 21.5.96 को स्वर्गवास हो गया।
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2. सुखाराम जी का परिवार
डूंगर रामजी के द्वितीय पुत्र सुखाराम जी के तीन पुत्र हुए- 1. पेमाराम जी 2. रामदयाल जी, 3. कुंभाराम जी। पेमाराम जी का युवावस्था में ही देहान्त हो गया। रामदयाल जी पासीरामजी के गोद चले गए। इस प्रकार सुखाराम जी के पास एक पुत्र कुंभाराम जी ही रहे। उन्होंने अपने पुत्र को बहुत वर्षों तक बम्बई में अपने पास ही रखा। वहां वे लोहे के काम में प्रथम श्रेणी के कारीगर बने। सुखाराम जी ने अपने भाई घासीराम जी के साथ बम्बई में रह कर करोबार को भली भांति संभाला व निरन्तर विकास की ओर गतिमान रहें।
सुखाराम जी की पत्नी रामगढ़ (सीकर) की थी जो पं. भोलाराम आर्य की माताजी की मंगी भुवा थी। सुखाराम जी का स्वर्गवास संवत् 1951 में हुआ तथा द्वादशा मिति आसोज सुदी 4 संवत् 1951 को हुआ। कुंभाराम जी की माताजी का स्वर्गवास संवत् 1953 में हुआ तथा खर्च मिति पोह सुदी 10 बुधवार सं. 1953 को हुआ।
कुंभाराम जी :
कुंभाराम जी लकड़ी व लोहे के काम के अद्वितीय कारीगर थे। उनके द्वारा बनाई हुई लकड़ी को पेटियां, लोहे की सदृखें, पिजरे आदि आज भी कई घरों में मौजूद हैं जिन्हें कलाकारी के बेजोड़ नमूनों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इन नमूनों कारण ही बुजुर्गों से सुनकर वर्तमान पौड़ी के लोगों में भी उनके काम व कारीगरी
की छाप उनकी यादों में स्थान बनाए हुए हैं।
कुंभाराम जी के तीन विवाह हुए। पहला विवाह अनुमानतः संवत् 1951-52 में हुआ था। उनकी पत्नी थेलासर की थी जो सेहूराम जी की भुवासास लगती थी। तीन चार साल के बाद ही उसका असमय में ही देहान्त हो गया। उनका दूसरा विवाह चूरू के आसलिया परिवार में मिति जेठ बदी 5 संवत् 1955 को हुआ। उसके कोई संतान नहीं हुई और पांच वर्ष बाद ही उसका भी देहान्त हो गया। अनुमानतः संवत् 1961-62 में हुआ उनका तीसरा विवाह महनसर के बरवाड़िया परिवार में हुआ। उनकी तीसरी सरी पत्नी जीवनी देवी की कुक्षि से प्रथम पुत्री तारामणी का जन्म हुआ। कुछ साल बाद दूसरी पुत्री रूकमणी का जन्म हुआ। घर में पुत्र न होने का दुःख बढ़ता ही जा रहा था। कुंभाराम जी ने तंग आकर सरदार शहर से लादूराम धामू को गोद ले आए किन्तु कई वर्ष बाद गोदनामा निरस्त कर लादूराम को वापस सरदार शहर भेज दिया; क्योंकि उसके बाद उनके तीसरी संतान पुत्र-रत्न तोला राम प्राप्त हो गया। पुत्र रुदन से घर में एक नए प्रकाश-पुंज का उदय हुआ। परिवार में खुशियों की बहार आ गई। चारों ओर हर्षोल्लास छा गया मानों उनके जन्म के साथ ही एक नवयुग का प्रारम्भ हो गया हो।
तोलाराम का लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार से होने लगा।
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कुंभाराम जी ने अपनी प्रथम पुत्री तारामणी का विवाह मिति जेठ सुदी 10 संवत् 1977 को चूरु के काकटिया परिवार में मालीराम जी के साथ सम्पन्न कराया। अब वे तेजी से वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे थे, साथ ही रुग्ण भी हो चले थे। अतः दूसरी पुत्री रूकमणी के विवाह में भतीजा मन्ना लाल जी ने व्यवस्था करके चूरु लदोया परिवार में केसबराम जी के साथ रुकमणी का पाणिमहण संस्कार मिति जेठ बदी 3 संवत् 1985 को विधि पूर्वक सम्पन्न कराया। कुंभाराम जी धीरे धीरे कमजोर हो रहे थे। वे हुक्का पीते थे। श्वांस का रोग उन्हें चैन नहीं लेने देता था। आखिर में श्वांस के रोग ने उन्हें पूरी तरह दबोच लिया और मिति माह सुदी 1 संवत् 1991 को उनका स्वर्गवास हो गया तथा उनका द्वादशा मिति माह सुदी 13 संवत् 1991 को हुआ। मन्नालाल जी व तोलाराम जी ने उनकी अंत्येष्टि व खर्च का कार्य सम्पन्न कराया तोलाराम जी : तोलाराम जी का जन्म अनुमानतः संवत् 1976 में असाधारण बुद्धि-वैभव व प्रतिभा लेकर आए। आप बचपन साथ आ। आप जन्म के स स्वभाव के नटखट स्व तिमति के साथ और अपने लक्ष्य को पाकर ही चैन की सांस लेते थे। आपने स्वतंत्र गतिम जीने की कला को सीखा तथा तदनुरूप ही जीवन में कुछ कर गुजरने की भावना संजोए कठिन मार्ग को चुना।
हुए मजदूर तबके के बालकों को पढ़नें-पढ़ाने का उस समय अनुकूल वातावरण नहीं था, फिर भी आपने कथा तक पढ़ाई करके हिन्दी व अंग्रेजी भाषा का सामान्य ज्ञान प्राप्त किया। आगे चल कर वहीं ज्ञान उनकी उन्नति का सोपान बना। Learning by doing आपके जीवन का प्रथम सिद्धान्त बना। अनुभव से अर्जित वस्तु (object) ही आपके भावी योजना की कुंजी बनीं। सतत् सीखने की प्रक्रिया में कहीं व्यवधान नहीं आया। परिणामतः आज भी आपकी प्रभा से बहुमुखी ज्ञान-रश्मियां उत्कीर्ण हो रही हैं। आप गांव में ही रह कर कारपेन्ट्री का काम करने लगे। शीघ्र ही लकड़ी के काम के कारीगर हो गए। एक कारीगर को मिलने वाली मजदूरी इन्हें भी मिलने लगी। कुछ समय के लिए आपने चांदी के आभूषण बनाने का भी काम किया। किन्तु मन टिक न पाया। आपका रुझान तो मशीनी दुनियां में विचरण करने का थाः इसलिए इन्हें अवसर की तलाश थी। आपकी अभिरुचि आयुर्वेदिक शोध एवं खोज की ओर भी बढ़ी। आप धुन के पक्के थे; किसी काम में जुट गए तो रात दिन उसी में लगे रहते और तब तक लगे रहते जब तक उसका परिणाम न पा लेते। घर में ही भट्टी बन गई और भस्मादि दवाओं का प्रयोग एवं निर्माण होने लगा। कुछ समय बाद आयुर्वेद के प्रति रुझान समाप्त हो गया और तेजी से बढ़ने वाली एले एलोपेथी के प्रति पकड़ मजबू मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील हो गए। बहुत कम समय में ही घर के आलों व ताकों में एलोपेथी दवा की शीशियां अट गई। उनके गले में स्टेथिसकॉप शोभा देने लगा। आसपास के बीमारों को दवा दी जाने लगी। उनके परिणाम भी अनुकूल आने लगे। कठिन अध्यवसाय, लगन व कठोर परिश्रम से काफी दवाओं का ज्ञान प्राप्त किया। उत्साह बढ़ता गया और उनकी खोज पूर्ण दृष्टि ने उनके रुझान को स्थायी कर्म में परिपुष्ट किया। अब तो उनके जीवन का नित्य कर्म है, निःशुल्क सेवा करना और बीमारों को मुफ्त दवा वितरण।
सन् 1940 ई. में आप करायी चले गए और डालमिया सीमेन्ट फैक्ट्री में प्रथमतः कारपेन्टर के पद पर नियुक्त हुए। वहां उनको विभिन्न मशीनों को देखने, संचालित करने व मरम्मत करने का अवसर मिला। आप अपना केडर बदला कर फीटर बन गए। उसके बाद तो आप तेजी से उन्नति करते चले गए। सन् 1947 ई. में स्वतंत्रता के साथ त्रासदायी विभाजन भी प्राप्त हुआ। पाकिस्तान के निर्माण घोषणा के तुरन्त बाद में भारत में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। पाकिस्तान से आने बाले शरणार्थी व भारत से जाने वाले मुहाजिरों की भीड़ पर आततायियों के हमले और नरसंहार ने इतिहास के उस काल के पृष्ठों पर काला धच्या पोत दिया। हमारे परिवार के 30-40 सदस्य कराची में फंस गए। उनका वहां से निकलना बड़ा मुश्किल हो गया था। अंत में तोलाराम जी ने सबको हिम्मत दिला कर भारत आने का दृढ़ निश्चय किया। औरतों को बुरके पहनाए गए तथा पुरुषों को मुस्लिम पहनावे में रेलवे स्टेशन पर लेकर पहुँचे। तोलाराम जी उर्दू साहित्य एवं शब्दावलियों से सुपरिचित थे। वहां उन्होंने अपने परम विश्वसनीय मुस्लिम दोस्तों का सहारा भी लिया। रेलवे स्टेशन पर बड़ी अफरा-तफरी मची हुई थी। दंगाई रेल के हर डिब्बे में हिन्दुओं को तलाश रहे थे। ऐसी भयानक परिस्थिति में तोलाराम जी घबराए नहीं तथा सब को एक डिब्बे में आराम से बैठाया। जो भी दंगाई आता उसको अपने बात चातुर्य से प्रसन्न कर देते और किसी को भनक भी नहीं पड़ी कि उस गाड़ी में हिन्दू परिवार भी बैठा है। ईश्वर की कृपा से उनकी यात्रा बिना किसी दुर्घटना के पूर्ण हुई।
चूरु में हमारी भेजी हुई बस तैयार खड़ी थी। सब लोग उसमें बैठ कर सकुशल बिसाऊ पहुँचे। उस दिन परिवार के समस्त सदस्यों ने खुशियां मनाई।
कुछ समय बाद आप गीगाराम जी के साथ जयपुर आ गए। छगनलाल मोदी ने उन्हें आरामशीन पर चिराई हेतु मिस्त्री पद पर नियुक्त किया। तोलाराम जी ने डिजल इंजिन को बदल कर दूसरा 15 H.P. का इंजिन लाकर लगवाया। चिराई का काम तेजी से होने लगा। उन्होंने चार हजार फीट चिराई प्रति दिन करने का जयपुर रिकार्ड कायम किया। सेठ उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए और उनकों अनेक सुविधाएं प्रदान की। कुछ सालों बाद आपने बेनीवाल के कारखाने को भी संभाला। आपके मन में अपना निजी कारखाना स्थापित करने की प्रबल इच्छा थी। शीघ्र ही वह समय आया और आपकी साधना पूर्ण हुई। अजमेरी गेट के पास एक कारखाना शुरु किया जिसका नाम 'लबोरियस मेकेनिक्स' रखा। कई वर्षों तक दिन रात कठोर परिश्रम करने के परिणाम स्वरुप आज उनके पांच कारखाने चल रहे हैं:
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1. लेबोरियस मेकेनिक्स
2. इंडियन आयरन मेन
4. राजस्थान हीट ट्रीटमेन्ट
3. इलेक्ट्रीकल एण्ड मेकेनिकल सेन्टर
5. इंडियन इंजीनियरिंग वर्क्स
अर्जुन के लक्ष्य बेध की तरह एक ही लक्ष्य संधान पर आपकी दृष्टि टिकी रही और अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इसलिए अन्य विषयों पर चितन का समय ही नहीं था। ऐसी लगन ही फलदायी सिद्ध होती है। कुछ मशीनें जो विदेशों से आयात की जाती थी, उन्हें अपने कारखाने में बहुत कम मूल्य में तैयार करके दी जिसकी चारों ओर प्रशंसा तो की गई लेकिन सरकार की आंखें नहीं खुली। ऐसी गौरवमय उपलब्धि पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करना सरकार का कर्तव्य ही नहीं दायित्व भी होता है। विदेशों में ऐसी उपलब्धि धारक का नाम विश्वाकाश में नक्षत्र की तरह घूर्णित होता रहता है। उन्होंने दो मशीनें बनाने पर विशेष ख्याति अर्जित की जो निम्न लिखित हैं-
1. क्लॉज सर्किट ड्राई माइंडिग मशीन 2. कन्टीन्यूअस कास्टिंग व रोलिंग मील।
जयपुर में कुछ पत्र-पत्रिकाओं के संवाददाताओं का ध्यान उनकी ओर अवश्य आकृष्ट हुआ तथा साक्षात्कार भी लिए। कुछ वर्षों पूर्व 'इतवारी पत्रिका में उनका व्यंग्य चित्र व साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था। दिनांक 1-9-86 को राजस्थान पत्रिका में उनके जीवन संघर्ष का विवरण 'जुगाड़ का मास्टरः तुलाराम' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। जानकारी के लिए उस लेख की प्रतिलिपि यहां दी जा रही है:
जुगाड़ का मास्टर : तुलाराम
"उम्र 64 साल, दोनों ही आंखों में मोतिया बिन्द का प्रकोप व जवान बेटे के एक्सीडेन्ट में अकाल मृत्यु पर भी काम जारी है। पांच कारखाने चलते हैं। लगभग 60-70 कारीगर काम पर हैं। चालीस पचास हजार की तनख्वाह बंटती है। यह कोई खानदानी उघोगपति के कारखाने नहीं बल्कि एक खाती का हिस्सा है जिसने अपने गांव बिसाऊ में लगभग 50 साल पहले कमाई शुरु की चार आना रोज के हिसाब से। तोलाराम ने असली काम सीखा कराची में शेखावाटी के सेठ डालमिया की सीमेन्ट फैक्टरी में। सन् 1940 ई. में चुरु से जोधपुर, जोधपुर से हैदराबाद फिर हैदराबाद से कराची दो रूपये का रेल टिकिट लेकर पहुंचे थे। कराची मे शेखावाटी के ही सेठ डालमिया की मिल में बढ़ई के काम पर लग गए। पगार थी एक रुपया बारह आनa (आज के एक रुपया पचेहत्तर पैसा) लगभग। तीन साल बाद फैक्टरी का काम करने का मौका दिया। यह तुलाराम का मशीनों से पहला परिचय था। मेनजेमेन्ट शोप में फैक्टरी की ब्रेक डाउन हुई, मशीनें ठीक होने आती थी डेविस ने मशीनों की ड्राइंग पढ़ना खराद, ड्रिलिंग मशीन कटिंग मशीन, प्लोनर आदि पर काम करना सिखाया। पाचं साल डेविस ने खूब काम करने का मौका दिया, खूब ऑवर टाइम दी। इजाजत दी तथा छुट्टियों में भी काम करने की मनाही नहीं थी। पैसे भी अच्छे मिलने लगे। ऑवर टाइम मिल कर करीब पौने तीन सौ रु. मिल जाते थे। पर 1947 ई. में देश के विभाजन पर वापस बिसाऊ लौटना पड़ा।
इरादा था गांव में तीन-चार महीने आराम करेंगे पर 15-20 दिन बाद ही गांव के सेठ परसादी लाल ने कहा कि उसने जयपुर में एक आरा मशीन खरीदी है। उसको फौटिंग करवादें। कभी जयपुर देखा नहीं था। अतः जयपुर देखने के लोभ से मशीन लगाने जयपुर आ गए। पर जयपुर आने पर मालूम पड़ा कि परसाटी लाल के भाई बंधुओं ने तो वह मशीन बेच दीः क्योंकि कोई मिस्त्री नहीं मिला ठीक से फिट करने वाला। मशीन के नये खरीददार जयपुर बीकानेर ट्रेडिंग कंपनी' वाले छगनलाल मोदी ने भी तुलाराम की खबर मालूम पड़ने पर बुलवालिया मशीन फिट करवाने के लिए। उस जमाने में जयपुर में बिजली बहुत कम थी। अतः अधिकतर मशीनें डिजल के इंजिन से चलती थी। आरा मशीन अब तक इसलिए नहीं चलों थी कि उसके साथ जो इंजिन दिया गया था, वह 8-7 होर्स पावर का था जबकि बाहिए था 15 होर्स पावर का। नया इंजिन तेरह हजार में खरीदा गया तथा आरा मशीन में काम आरभ्म किया। सेठ छगन लाल प्रभावित हुआ व तुलाराम को रहने की जगह दी तथा अपने यहां काम पर रख लिया। पूरी जिम्मेदारी थी। मन लगा कर काम किया। चार हजार फीट तक एक रोज में चिराई कर दी जो संभवतः आज भी जयपुर में रिकार्ड होगा। सेठ इतना खुश हुआ कि तनख्वाह दुगुनी कर दी, कपड़े, बोनस आदि सब देने लगा। विश्वास इतना जम गया था मेहनत से कि मालिकों में एक बार बंटवारे की नौबत आ गई तो सेठ छगन लाल ने कहा कि आरा मशीन व कारखाना दे दूंगा पर मिस्त्री तुलाराम को अपने पास रखूंगा। दूसरी पार्टी नहीं मानी और बंटवारा टल गया।
छगनलाल मोदी के कारखाने में चौधरी बेनीवाल का ट्रांसपोर्ट का अच्छा धंधा था, उस जमाने में भी चालीस ट्रक लकड़ी की चिराई आदि कराने आता था। तुलाराम की लगन से प्रभावित होकर उसे अपने यहां ले जाने की पेशकस की, जहां उनके ट्रकों की मरम्मत होती थी। सेठ छगन लाल तुलाराम को इस शर्त पर छोड़ने को तैयार हुआ कि तुलाराम का रहन-सहन सेठ के यंहा ही बरकरार रहेगा और सेठ के काम की नैतिक जिम्मेवारी तुलाराम वहन करेगा। बेनिवाल के यहां तुलाराम ने दो साल तक काम किया फिर एक पंजाबी रमेश जी के जो तुलाराम के पास अपनी आरा मशीन की मरम्मत व राय के लिए आया करते थे, तुलाराम को खुद का काम करने का मौका दिया। रमेश जी के पास 5 हार्स पावर का बिजली का कनेक्शन था तथा जगह थी। तीन हजार की जमा पूंजी लगा कर तुलाराम ने कारखाना शुरु किया। एक सत्तरह सौ रुपये में खराद मशीन ली व तीन चार आदमी रखें। कारखाने का नाम रखा सेठ छगन लाल के बेटे की राय से 'लेवोरियस मेकेनिक्स' शागिदों के जयपुर में तीस-पैतीस कारखाने और होंगे। तीस साल में तुलाराम ने कई मशीनें बनाई। कई तो ऐसी जो विदेशों से आज भी आयात होती हैं। विशेषकर 1970 ई. में बम्बई के गुजराती सेठ लल्लू भाई के लिए चालीस टन एलमोनियम प्रतिदिन काम में लेने वाली 'कंटीन्यूअस कास्टिंग व रोलिंग मिल' हैं। यह मशीन दुबारा जमशेदपुर आई-इनकैव के मुख्यालय लंदन से सलाह आई थी कि कम्पनी व्यर्थ ही अपना समय बरबाद न करें। भारत में यह मशीन नहीं बन सकती। चेकोस्लोवाकिया से आयात करने पर तुलाराम ने जब मशीन बना दी तो लंदन से कंपनी के डायरेक्टर देखने आये व चलती मशीन की रील खींच कर ले गए। चालीस लाख आयातित मशीन के दाम हैं। तुलाराम ने छ लाख लिए। इसी प्रकार अहमदाबाद के पास गोदरा में कोठारी के लिए 'ड्राई पाइडिंग मिल' बनाई है केवल दो लाख में जिसे कलकत्ता को बड़ी कम्पनी में 15 लाख में बेचती है। इसी प्रकार फुलेरा के आनन्दी लाल ठेकेदार के लिए पचास टन प्रतिदिन की क्षमता का 'मिनी सीमेन्ट प्लांट'बनाया है जो आज भी बढ़िया चल रहा है। लागत आई थी 10 लाख रुपये पर तुलाराम के अनुसार दुःख की बात यह है कि आराएफ.सी. व अन्य सरकारी दफ्तरों में उसने कभी तालुकात नहीं बनाए। अतः हालांकि उनके पास अनेक ग्राहक आते हैं मिनी सीमेन्ट प्लान्ट बनाने के लिए परन्तु उन्हें तुलाराम को प्लांट खरीदेने के लिए ऋण नहीं मिलता। वैसे अन्यों द्वारा निर्मित मिनी सीमेन्ट प्लांट की कीमत 70 लाख है जबकि तुलाराम द्वारा निर्मित संयंत्र की 15 लाख ।
तुलाराम आज 64 वर्ष की आयु में भी चुस्त हैं। शारीरिक व मानसिक दोनों रुप से देश के हालात व नीतियों के पूर्णतया कटु आलोचक। उनके अनुसार हम इंजीनियर तो बहुत रहे हैं पर करीगरों का अभाव है। नये कारीगर हाथ से काम करने वाले लगन वाले अब उठते जा रहे है। अब वह दिन दूर नहीं देश में कारीगरों का अकाल हो जाएगा। तुलाराम गर्व से कहते हैं कि मैंने जिंदगी में कोई कर्ज नहीं लिया, हालांकि कई बार बैंक वाले स्वयं सुझाव लेकर आये- तोलाराम जी के
जीवन को नजदीकी से देखने पर उनकी विशेषताएं स्पष्टतः दिखाई देती हैं जो एक सामान्य व्यक्ति में कम देखने को मिलती हैं। इन्हीं विशिष्टताओं के बल पर उनके प्रभावी व्यक्तित्व का निर्माण हुआ:
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आज लगभग 30 साल बाद पांच कारखाने हो गए तथा तुलाराम के सिखाए
1. वे तोलाराम से तोलाराम जी मिस्त्री बने अपने सतत् कठोर परिश्रम एवं अधाक्य लगन से । कर्म और बस कर्म ही उनकी जीवन-चर्या का एक मात्र ध्येय। बड़ी मुश्किल से पैदा होता है कर्मयोगी।
2. आप सही समय पर सही काम सही मूल्य पर देने के पक्षधर हैं।
3. आपने कारखाने की अन्य व्यवस्था तथा हिसाब किताब के जंजाल से परे रहते हुए संभागियों में पूर्ण विश्वास के साथ दायित्व निर्वहन की क्षमता उत्पन्न को । आपने अपने भाई-बहुओं को कारखाने में रखा और खुले मन से उद्यम-मन्दिर 4.
का तकनीकी प्रसाद बांटा। उनको उनके कारखाने का विस्तृत क्षेत्र मिला, अधिगम सामग्री मिली और हार्दिक सहयोग। वे प्रशिक्षित भी हुए और सक्षम भी। फलतः वे येन केन प्रकारेण अपने लक्ष्य-श्रृंग-आरोहण पर सफलता प्राप्त कर स्वतंत्र पताका गाड़ सके। ऐसे व्यक्तियों में प्रमुखतः सर्वश्री सांवर मल शर्मा, नौरंग लाल, रामकुमार धामू, दुर्गालाल धामू, श्यामसुन्दर धामू, सत्यनारायण धामू, नत्थू जी राजोतिया, भगवान जी सरदार शहर आदि हैं।
5. सादा जीवन उच्च विचार आपके जीवन में खरा उतरा है। साधारण पहनावा व सामान्य भोजन आपकी दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए। कोई बड़ा आदमी (उद्योगपति) उनसे प्रथम बार मिलने आता है तो उनकी कल्पना में आधुनिक साजसज्जायुक्त कार्यालय की प्रधान कुर्सी पर बैठे हुए शानो-शौकत वाले तोलाराम जी होते हैं; किन्तु मटमैली खाकी पैन्ट शर्ट में 5.3" का एक अदना-सा व्यक्ति देख कर उनकी गगनचुंबी कल्पना यथार्थ की धरती पर गिर कर चूर-चूर हो जाती हैं और साश्चर्य उनके नैत्र पलक झपकना भूल जाते हैं।
6. आप बात करने में चतुर हैं और तार्किक पक्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में माहिर हैं। लक्षणा व व्यंजना शक्तियों का प्रयोग आपकी अभिव्यक्ति को सहज ही दिलचस्प बना देती है।
7. आपके घर या कार्यालय में बड़े बड़े डाक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति आदि लोगों की वार्ताएं चलती रहती हैं, उस समय उतनी ही समता व स्वतंत्रता के साथ सामान्य कर्मचारी या अन्य व्यक्ति भी खुल कर भाग ले सकता है।
8. आप रसायन शास्त्र के अच्छे ज्ञाता है। 9. आपका बाह्यांतर कलेवर इस्पाती है किन्तु भीतरी भाग का एक कोना मोम-सा मुलायम भी हैं।
11. आप वर्तमान समाज की विसंगतियों के कटु आलोचक हैं। भारत के हर दो हाथ को काम चाहिए, किन्तु सबकों काम दिया नहीं जा सका है। यदि कोई देना चाहे तो दो हाथ करने को तैयार नहीं है। सब को कुर्सी की अपेक्षा है। शिक्षा कुर्सी के उम्मीदवार बनाती है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का घोर विरोध करते हुए बताते हैं कि बालक को पुस्तकीय ज्ञान देने की समयावधि कम व रूच्यानुकूल तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल व समय दिया जाना चाहिए और प्रतिभावान बालक को समस्त सुविधाएं देकर आगे बढ़ने का सुअवसर दिया जाना चाहिए।
12. आप खुले मन से नव उद्यमी व्यवसायियों व इंजीनियरों को अपना मार्ग दर्शन देते रहते हैं। सबके लिए उनके दरवाजे सदैव खुले रहते हैं। एतदर्थ प्रतिदिन ज्ञानपिपासु अपनी पिपासा शान्त करके लौटते हैं।
13. आप हिन्दी, उर्दू, राजस्थानी तथा अंग्रेजी साहित्य के प्रति रुचि रखते हैं। अनेक विषयों का आप अध्ययन करते रहते हैं।
14. जांगिड़ इंडस्ट्रीज एसोसियेशन, जयपुर के प्रथम वार्षिकोत्सव पर दिनांक 18.11.89 को आपका अभिनन्दन किया गया तथा आपके तकनीकी अनुभवों से लाभ प्राप्त करने का प्रेरणा ली।
आपका विवाह मिति बैसाख शुक्ला 3 संवत् 1993 (1936 ई) को चूरु के राजोतिया परिवार में बद्री प्रसाद जी की पुत्री ऋद्रि देवी के साथ हुआ। आपके दो पुत्र व चार पुत्रियां हुई। बड़े पुत्र का नाम योगेश व छोटे पुत्र का नाम अशोक है। चार पुत्रियों में प्रथम पुत्री उषा का विवाह चिड़ावा के सामड़ीवाल परिवार में श्री मातूराम जी के पुत्र राजेन्द्र कुमार से हुआ। द्वितीय पुत्री शकुन्तला का विवाह झुंझुनूं के दनेवा परिवार में श्री पूर्णमल जी के पुत्र श्री गौरीशंकर से हुआ। तृतीय पुत्री मुन्नी का विवाह झुंझुनूं के सीदड़ परिवार में श्री दयानन्द जी बगड़िया के पुत्र श्री सुन्दरमल के साथ हुआ तथा चतुर्थ पुत्री संतोष का विवाह भी उक्त परिवार में श्री राधेश्याम जी के पुत्र रतनलाल के साथ हुआ।
1. योगेश :
योगश ने जयपुर की सेंट जेवियर स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। 18 वर्ष की अवस्था में ही पिता के निर्देशानुसार उनके कार्य में हाथ बंटाने लगे। वे एक प्रतिभावान युवक थे। अतः उन्होंने शीघ्र ही एक कारखाना संभाल लिया। वे धीर धीरे अपनी स्वतंत्र गतिमति के अनुसार निर्णय लेकर बड़े-बड़े नए जॉब लेकर पूर्ण करते तथा उन्होंने अपने पिता के नाम को चार चांद लगाए। बचपन में उनके लाड़ प्यार का नाम कीकु था जो वास्तव में उनके अपने परिवार के लिए कीर्तिकुंभ (कीकु) ही थे।
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10. आपको राजस्थान के उद्यमी-समाज का लौह पुरुष कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।
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उनका विवाह सिनवाली (लक्ष्मणगढ़-सीकर) के स्व. मोहन लाल जी की पुत्री दुगदिवी के साथ हुआ। विवाहोपरान्त उनकी कार्यशैली में परिवर्तन आया और उन्होंने व्यवसाय को तेजी से फैलाया। सफलताएँ उनके पैर चूमने लगी किन्तु विधाता को यह सब मंजूर नहीं था। अचानक एक दुर्घटना में उनकी युवावस्था में ही अकाल व असमय मृत्यु हो गई। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, दो पुत्र व एक पुत्री को विलखते छोड़ गए। भी
वर्तमान में उनका बड़ा पुत्र नारायण अध्ययन के साथ साथ एक कारखाने को देख रहा है। छोटा पुत्र परमेश्वर व पुत्री कृष्णा पढ़ रहे हैं।
2. अशोक कुमार:
आप तोलाराम जी के छोटे सुपुत्र हैं। आपका जन्म जयपुर में हुआ। आपने भी सेंट जेवियर स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद आप पिता के व्यवसाय में ययोचित योग्यतानुसार सहयोग करने लगे। इसके साथ सीथ ही आपने मीलिग मशीन की कार्य-प्रणाली को भी सीखा। अपने बड़े भाई के असामयिक निधन से उनको घारी आपात लगा तथा साथ ही कारखाने का पूर्ण कार्यभार भी उन पर आ पड़ा। ऐसी कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए आपने धैर्य एवं दृढ़ निश्चय का परिचय दिया। आपने कारखाने का संचालन एवं प्रबन्ध लगन व कर्मठता के साथ संभाला तथा अपने पिता के निर्देशानुसार अविरत कार्य-निष्पादन करते रहे। वर्तमान में आप अपनी स्वतंत्रता के साथ कारखाने का संचालन कर रहे हैं।
आपका विवाह चिड़ावा (झुंझुनूं) के मूल निवासी वर्तमान में दिल्ली में कार्यरत श्री सूरजमल जी के पुत्र श्री नथूराम जी की सुपुत्री किरण देवी के साथ सम्पन्न हुआ। आपके एक पुत्र व एक पुत्री है। पुत्र श्री कुंज बिहारी स्कूली शिक्षा महण कर रहा है।
आप बड़े सरल व सौम्य स्वभाव के हैं तथा व्यवहार कुशलता में दक्ष होने के कारण सबका सहज ही मन मोह लेते हैं। वैसे आप मित भाषी हैं और सुलझे विचारों के हैं। आपकी उदारता एवं सहृदयता से सभी प्रभावित होते हैं। आप सामाजिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों में बराबर रुचि लेते हैं। अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते हुए भी आप पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते रहते हैं। आप 'जांगिड़ इंडस्ट्रीज एसोसियसन जयपुर के सम्मान्य सदस्य हैं। आप 'तरुण विश्वकर्मा' पत्र के आजीवन सदस्य हैं। आप समाज हितार्थ यथावसर आर्थिक सहयोग भी प्रदान करते रहते हैं।
आपके व आपके पिता द्वारा किए गए समाज कल्याणकारी कार्यों का संक्षेप में विवरण दिया जा रहा है
3. विश्वकर्मा मन्दिर, चूरु की दूसरी मंजिल पर अनेक कमरों का निर्माण। 4. अनेक संस्थाओं को आर्थिक योगदान।
तोलाराम जी की पत्नी श्रीमती ऋद्धि देवी एक कुशल गृहणी, सेवाभावी पत्नी, उदारमना व स्वाभिमानी महिला थी। उसमें पौराणिक संस्कार कूट कूट कर भरे थे। वह नित्य प्रातः काल स्नानादि करके पूजा-पाठ पाठ करती, मन्दिर में भगवान का दर्शन करतीः तत्पश्चात् गृहकार्य में लगती। उसने अपने जीवन में सब तरह के व्रत-उपासना आदि श्रद्धा के साथ पूर्ण किए। धार्मिक प्रवृत्ति में सदैव संलग्न रहते हुए उसने समय-समय पर विभिन्न देव स्थानों व संस्थाओं को मुक्त हस्त से दान दिया। उनके बड़े पुत्र योगेश के असमय निधन से उनको गहरा आघात लगा। परिणामतः वे घातक बीमारी से पस्त हो गई और दिनांक 17.2.1993
को उन्होंने अचानक शरीर छोड़ दिया। श्री तोलाराम जी ने और सब कुछ किया किन्तु पारिवारिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्रिया कलापों से सदैव दूर ही रहे। उनकी पत्नी मी ने ने उनके उन अधूरे कायों को सक्रियता के साथ सम्पन्न करके उनके व्यक्तित्व को संपूर्णता दी। इस संदर्भ में उनकी पत्नी का महत्वपूर्ण सहयोग (योगदान) जीवन साथी के रुप में विशेष प्रशंसनीय है। तोलाराम जी ने जहां आवश्यक समझा वहां आपने अपनी पत्नी की सदप्रेरणा से समाज को आर्थिक सहयोग भी दिया है। आपने जांगिड़ विद्यापीठ, सीकर (राज) का सभापति पद स्वीकार किया तथा युवकों को व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत प्रशिक्षण हेतु मशीनों को क्रय करने में आर्थिक सहायता प्रदान की। चूरु में जागिड़ गेस्ट हाउस के निचले बड़े हॉल को अपनी माताजी जीवनी देवी की स्मृति में निर्मित कराया। जयपुर में जांगिड़ अतिथि भवन में एक कमरे को बनवा कर प्रदान किया।
आपकों दिनांक 14 नवम्बर, 96 को श्री चन्द्रसागर दिगम्बर जैन पुस्तकालय, बिसाऊ के सभागार में "श्री दुलीचन्द्र सरावगी प्रज्ञा पुरस्कार प्रदान किया गया।
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1. जयपुर में जांगिड़ अतिथि भवन में एक कमरे का निर्माण 2. चूरु में जागिड़ अतिथि भवन में एक बड़े हॉल का निर्माण
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बिसाऊ के धामू वंश से सम्बद्ध एक और धामू परिवार
बिसाऊ के धामु परिवार के पूर्वज बीराणिया से आये कितु स्व.जन्द लाल धामू का एक परिवार ऐसा है जो सीधे हमारी वंशावली से जुड़ा हुआ नहीं है। बुजुर्गों से सुना गया कि उक्त परिवार मूलतः बीराणिया से ही निकला है किन्तु उनके पूर्वज सधीनसर (झुंझुनू) बस गए। चोखा राम जो का द्वितीय पुत्र दुल्हाराम जी का पौत्र बुधराम का युवावस्था में देहान्त हो जाने पर सथीनसर से इन्हीं के परिवार की एक शाखा से एक पुत्र गोद लाया गया। उसका नाम भी बुधराम ही रखा गया। उसी परिवार के एक भाई नन्दलाल जी युवावस्था में ही रोजगार की तलाश में हिसार (हरियाणा) चले गए। कई वर्षों तक वे वहीं रहे। उनका विवाह बालसमद में हुआ।
विवाहोपरान्त वे हरियाणा के अनेक क्षेत्रों में काम करते रहे फिर घूमते-घामते अंत मे बिसाऊ आ गए। हमारे परिवार ने उनको अस्थायी रूप से हुणताराम जी की गवाड़ी रहने के लिए दे दी। नन्द लाल जी अपने परिवार के साथ रहने लगे और मजदूरी भी मिलने लगी। धीरे-धीरे उनकी आय में क्रमशः वृद्धि हुई। बाद में उन्होंने दयालाराम जी के बाड़े के उत्तर में स्थित जमीन खरीद ली और वहां अपना मकान बना कर रहने लगे।
नन्द लाल जी सीधे-सादे व्यक्ति थे। वे किसी प्रपंच में नहीं रहते थे। वे घर में गाय या भैंस रखते थे। ये हुक्का पीते थे। वे नित्य मजदूरी करके शाम को घर लौट आते और घर पर ही बैठ कर कृषकों की आवश्यक वस्तुओं की मरम्मत करते रहते । उनका देहान्त आज से 45 वर्ष पूर्व ही हो गया था। उनकी पत्नी का देहान्त 1982 ई. में हुआ। उनके तीन पुत्र हुए। 1. गोकुल चन्द 2. रामकुमार 3. बजरंग लाल ।
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1. गोकुल चन्द जी
नन्द लाल जी के सबसे बड़े पुत्र गोकुल चन्द रामगढ़ के मीसण परिवार में विवाहे थे। वे लकड़ी, पीतल, चांदी आदि के काम के कुशल कारीगर थे। बाद में वे मशीनों की मरम्मत करने वाले मिली बन गए और पावर हाऊस, बीकानेर में नौकरी करने लगे। वे अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध हुए और अपनी धाक जमाये रखी। उन्होंने अपनी लगन एवं मेहनत से बीकानेर में अपना स्वतंत्र कारखाना स्थापित किया। किन्तु उनका देहावसान हो गया। एक वर्ष बाद ही उनकी पत्नी का देहावसान हो गया। उनके तीन पुत्र हुए- 1. देवी लाल 2. निरंजन साल 3. रामजी लाल ।
1. देवी लाल:
देवी लाल सरदार शहर विवाहे। उन्होंने कई वर्षों तक जयपुर में श्री तोलाराम जी के कारखाने में टर्नर का काम किया, उसके बाद वे अपने पिता के पास बीकानेर चले गए और वहीं कारखाने में काम करने लगे। वर्तमान में वे अपना स्वतंत्र कारखाना चला रहे हैं। आपके एक पुत्र वियज कुमार व चार पुत्रियां हैं। विजय कुमार का विवाह नोखामंड़ी के तिराणिया परिवार में श्री भैराराम जी पुत्र श्री छगन लाल जी की पुत्री मंजू से हुआ। विजय कुमार के एक पुत्री है। देवी लाल जी के कारखाने का नाम है 'न्यू विश्वकर्मा मेकनिकल वर्क्स, राणीसर बास, बीकानेर। 2. निरंजन लाल:
आप गांगियासर के बछाणिया परिवार में श्री त्रिलोक जी की पुत्री को व्याहे।
आपकी पत्नी का नाम बसंती देवी है। आपने कठिन परिश्रम करके कारखाने को जमाया और ख्याति अर्जित की किन्तु दुखः के साथ लिखना पड़ता है कि उनका युवावस्था में ही देहावसान हो गया। उनके तीन पुत्र व दो पुत्रियां हैं। पुत्रों के नाम हैं:- 1. विनोद कुमार 2. शिव प्रसाद 3. मुकेश कुमार। विनोद कुमार का विवाह झुझुनू के बंदृखिया परिवार में श्री हरिराम जी की पुत्री संतोष के साथ हुआ। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है। शिव प्रसाद का विवाह सौरियासर के श्री ज्वाला प्रसाद जी की पुत्री वंदना के साथ हुआ। 3. रामजी लाल :
रामजी लाल का विवाह फतेहपुर के बरवाड़िया परिवार में श्री रामकुमार जी की पुत्री गायत्री देवी के साथ हुआ। इनके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। पुत्रों के नाम है। 1. शेखर 2. विशाल। आप एक कुशल कारीगर हैं और अपना स्वतंत्र वर्कशॉप चलाते हैं। आप बीकानेर में राजा भाई साहब के नाम से प्रसिद्ध हैं। आपकी फर्म का नाम है लेबोरियस मेकेनिक्स, राणी बाजार, बीकानेर। आपने उक्त वर्कशॉप जयपुर में श्री तोलाराम जी मिस्त्री के प्रथम कारखानें लेबोरियस मेकेनिक्स की एक शाखा के रूप में बीकानेर में स्थापित की जो उसी नाम से आज प्रसिद्ध है।
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2. रामकुमार जी रामकुमार जी का विवाह फतेहपुर के पंवार परिवार में रतनीदेवी के साथ हुआ। आप प्रारम्भ में लकड़ी का काम करते थे। आप ने अनेक नगरों में जाकर काम किया। इसके बाद डोजिल इंजिन की मरम्मत का काम करने लगे तथा श्री माधोपुर में एक फ्लोवर मिल को कई वर्षों तक संभाला। जब श्री तोलाराम जी मिस्त्री ने जयपुर में अजमेरी गेट के पास प्रथम कारखाना स्थापित किया तब सन् 1957 ई. में रामकुमार जी को अपने पास बुला लिया। उन्होंने कारखाने का काम जिम्मेदारी के साथ संभाला तथा दिन-रात कठोर परिश्रम करके अपनी योग्यता व कार्य क्षमता का परिचय दिया। फलतः वे ख्याति प्राप्त मिस्त्री हो गए। इसके साथ ही साथ उनके अर्थोपार्जन में भी काफी इजाफा हुआ। वे दूरदर्शी थे जिसका सुपरिणाम उन्हें मिला। उन्होंने 1964 ई. में अपना अलग कारखाना स्थापित कर लिया। उनका पाहकों से पुराना सम्पर्क था ही। अतः उनका कारखाना भली प्रकार से चलने लगा। जनता कालोनी में आपने अपना मकान भी बनवा लिया। जयपुर में तोलाराम जी के बाद रामकुमार ने अपने व्यवहार एवं कार्यकुशलता के बल पर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृद्ध बनाया। उन्होंने अनेक प्लाट खरीदे और अनेक वर्कशॉप स्थापित किए। आपका मई 1992 ई. में स्वर्गवास हो गया। आपके पांच पुत्र हैं- विश्वनाथ, जगदीश, राधाकिशन, पप्पू व दिनेश।
(i) विश्वनाथ : रामकुम जी के जेष्ठ पुत्र श्री विश्वनाथ जी लक्ष्मणगढ़ ब्याहे हैं। वे अपने पिता के चरणचिह्नों पर चलते हुए परिवार का कार्यभार संभाले हुए हैं और वर्कशॉप का भी भली प्रकार से संचालन कर रहे हैं। आप ईश्वर के परम भक्त हैं और यथावसर धार्मिक अनुष्ठानों व सतसंगों में भाग लेते रहते हैं। आप प्रपंचों से दूर रहते हुए अपनी सीमा में कार्यरत रहते हैं। बिसाऊ की प्रॉपर्टी को भी आप ही संभालते हैं। आपकी फर्म का नाम हैं:
विष्णु इंजीनियरिंग वकर्स, घाट गेट, जयपुर (ii) जगदीश प्रसाद : आपका विवाह चूरु के राजोतियां परिवार में श्री दुलीचन्द जी की पुत्री के साथ हुआ। आप ने अपने पिताजी के सानिध्य में मेकेनिकल काम सीखा तथा कुछ वर्षों में ही दक्षता हासिल करली। 1971 ई. में आपने 'सुभाष इंजीनियरिंग वर्क्स फर्म स्थापित करके अलग से व्यवसाय प्रारभ्म कर दिया। सन् 1980 ई.में आपने 'हाइड्रोलिक्स इंडिया' संस्थान को प्रारभ्म करके व्यवसाय को आगे बढ़ाया। वर्तमान में आपका व्यवसाय अच्छा चल रहा है तथा आपने धामू परिवार में अपना विशिष्ठ स्थान बनाया है।
आप जांगिड़ वैदिक विद्यालय, फतेहपुर के आजीवन सदस्य हैं तथा 'जांगिड़ इण्डस्ट्रीज एसोसियसन जयपुर के संस्थापक सचिव हैं। आप एक जागरुक सामाजिक कार्यकर्ता है। समाज को आपसे अनेक अपेक्षाएं हैं। आपके एक पुत्र 'राजेश' है। है। आपके संस्थानों के नाम पते निम्न प्रकार से हैं:
1. सुभाष इंजीनियरिंग 2. हाइड्रोलिक्स इंडिया वर्क्स, जयपुर डी-125 (सी) रोड़ न9 डी. विश्वकर्मा औधोगिक क्षेत्र, जयपुर (iii) राधाकिशन आपक पका विवाह हरियाणा प्रांत के मटौली गांव में हुआ। परिवार एक प्रसिद्ध परिवार है। राधाकिशन ने अपने पिताजी मटीली गांव का उक्त जांगिड़ परि से मकैनिकल वर्कशॉप काम सीखा और कारखाने को भी संभाला। वर्तमान में अपना स्वतंत्र चला रहे हैं।
विवार मंडेला (iv) दिनेश : इनका विवाह पुत्री के साथ हुआ। आप एक दक्ष कर रहे हैं। के प्रसिद्ध व्यवसायी श्री दूगरमल जी की दक्ष कारीगर हैं और अपना स्वतंत्र वर्कशॉप का संचालन (v) पूनम (पप्पू) इनका विवाह मुकन्द गढ़ के श्री फूसाराम जी की पुत्री के साथ हुआ। आपने भी अपना प्रकार से संचालन कर रहे हैं। स्वतंत्र वर्कर शॉप स्थापित कर रखा है तथा उसका भलीरंग लाल 3. बजरंग नन्द लाल जी के तृतीय पुत्र श्री बजरंग जरंग लाल का बचपन बड़े आमोद-प्रमोद व मस्ती के साथ बीता। उन्होंने अपने शरीर को हष्ट पुष्ठ बनाने पर विशेष ध्यान दिया।
वे नित्य कसरत करते व दो से पांच सेर तक दूध पीते | उनके हाथ हाथ का पंजाब बहुत मजबूत था | वे एक हाथ से मुक्का मार कर जटदार नारियल के सैकड़ों टुकड़े कर डालते थे।
वे अनेक स्थानों पर गए किन्तु न्तु उनका मन नहीं लगा। आखिर जयपुर में आकर वे स्थायी रूप से रहने लगे। वे फर्नीचर चिर बनाने के दक्ष कारीगर थे। वे अनेक करीगरों का काम व अच्छा काम अकेले कर लिया करते थे। कम समय में अधिक व करना उनकी विशेषता थी। जयपुर में उनका कोई मुकाबला नहीं था। था। अपने कठोर परिश्रम के बल पर ही उन्होंने जयपुर में अपना निजी शानदार मकान बनवाया और अर्थार्जन भी किया। उनको प्रथम विवाह रामगढ़ के मगढ़ के मीसण परिवार में दानाराम जी की पुत्री के साथ हुआ किन्तु उनका गृहस्थ जीवन बीवन सुख शांति से नहीं बीत पाया। पारिवारिक कलह के मना करना पड़ा। प्रथम पत्नी से उनके कोई संतान भी नहीं कारण अनेक संकटों का सामना हुई। अतः उसका परित्याग करके दूसरी पत्नी सरदार शहर से लाये। उससे उनके तीन पुत्र हुए मुकेश, दिनेश व रुपे रुपेश। तीनों भाई अपना स्वतंत्र काम करते हैं। अब उन्होंने अपना मकान ढहर का बाला गालाजी क्षेत्र में खरीद लिया है और वहीं रहते हैं। बजरंग लाL जी का स्वर्गवास सन् 1994 ईमें हो गया।
धामू वंश की समाज को देन लगभग विराणिया से बिसाऊ आकर आबाद होने के पश्चात् धामू वंश के लग रनगर के साथ साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कौशल के साथ कार्यरत रहे हैं और उन्होंने अपने वंश और जन्म भूमि बिसाऊ के नाम को गौरवान्वित किया है। वर्तमान में भी देश के बड़े बड़े नगरों के साथ साथ खाड़ी देशों तक में इस वंश के शताधिक लोग अपनी प्रतिभा के बल पर कार्यरत रहते हुए समाज और देश की उन्नति में सहभागी बने हुए हैं। यह नगर बिसाऊ के लिए एक गौरव की बात कहीं जा सकती है। सोने-चांदी के आभूषणों पर चिताई, काठ के उत्पादों पर कुराई कोरणी, कारखानों के कार्यों में कुशलता, अभियांत्रिकी प्रतिभा, दस्तकारी में प्रवीणता आदि विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियां इस वंश के कारीगरों ने प्राप्त कर नगर के लिए एक इतिहास बनाया है। इनकी कौशल कीर्ति से बिसाऊ का नाम सदा सदा तक जुड़ा रहेगा और दूर तक गौरव के साथ लिया जाता रहेगा, यही धामू वंश की समाज को विशिष्ट देन है।
अपनी परम्परित प्रतिष्ठा के अतिरिक्त इस वंश के लोगों ने राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, साहित्यिक आदि अनेक धाराओं में गतिमान रहते हुए देश और समाज की सेवा की है तथा अद्यावधिसतत् भाव से जुड़े हुए हैं और विशिष्ट उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित कर रहे हैं। यह वंश के लिए भी एक गौरव की बात है। उज्ज्वल एवं उत्कृष्ठ भविष्य के लिए सभी आशावान है|